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नानाजी ने अपनी उंगलिया मेरी जांघों के बीच फसाया

अगस्त का महीना था। तेलुगु कैलेंडर के मुताबिक श्रावण चल रहा था श्रावण का महीना हमारे यहाँ के औरतों के लिए बहुत ही महत्त्व पूर्ण है। श्रावण के महीने के दुसरे शुक्रवार को महिलाएं अपने पति की आयु, स्वास्थ्य और सम्पदा के वृद्धि लिए 'मंगल गौरी व्रत' मनाते है। हमारे घर में भी यह व्रत माँ मानती है। लेकिन माँ इस व्रत कोअपनी दो और बहनों के साथ मिलकर हमारे बड़ी माँ के यहाँ मानती है। बड़ी माँ विजयवाड़ा में राहटी है।


इस वर्ष भी मनके लिए हम सब विजय वाडा जाने कि तैयारियां कर रहे थे। हुकमे यहाँ से ४ घंटे का रेल की सफर है। गुरवार के दिन था। दुसरे दिन व्रत है। शाम चार बजे की गाड़ी से हम सब यानि की माँ और हम तीनों बहने जाने कि तैयारी कर रहे थे।

 

दोपहर बारह, एक बजे के समय में हमारे यहाँ एक नानाजी अये थे। उनका तक़रीबन कोई 53 - 54 साल की उम्र होगी। रेवेन्यू ऑफिस कोई काम था! हमारे यहाँ कोई एक सप्ताह रहने अये है। आते ही उन्होंने हम सब को गले लगाए और हमारे माथे चूमे। मुझे ऐसा लगा की उन्होंने कुछ ज्यादा ही देर मुझे गले लगये थे और और मेरे नितम्बो और चूची को धीरेसे सहलाये।

 

वह माँ के दूर के रिश्ते से चाचाजी लगते है। माँ उन्हें चाचाजी कहती थी तो हम उन्हें नानाजी कहकर बुलाते थे। पहलीमंज़िल के गेस्ट रूम उन्हें दिया गया। हमेशा की तरह डैडी घर में नहीं थे। डैडी सिविल कांट्रेक्टर है कंस्ट्रक्शन साइट पर थे।

 

नानाजी के आने से हम सब उदेढ़ बुन में थे की बड़ी माँ की यहाँ कैसे जाए। व्रत का मामला था रुक भी नहीं सकते। हमारे समस्या सुनकर नानाजी ,माँ से बोले कहे "प्रभा आज के लिए मैं किसी होटल में रहजाता हूँ, तुम अपना प्रोग्राम मत बदलो। लेकिनमा की यह पसंद नहीं था, अतिथि घर ए और हम कही और चले उन्हें अच्छा नहीं लगा।

 

"माँ..." मैं बोली "मैं रुक जाति हुँ, नानाजी को यही रहने के कहिये मैं उन्हें देख लूंगी " कुछ देर की वार्तालाप के बाद यह तय हुआ की मैं रुक जावूं और वह लोग विजयवाडा के लिए चले। मैं रुक गयी और मम्मी और मेरे दोनों बहने प्रेमा, रीमा चले गए।

 

नानाजी के साथ मैं अकेली थी। माँ और बहने रविवार शाम को आयँगे। उस रात 8.30 बजे हम ने खाना खाया और नानाजी ऊपर अपने कमरेमे चले गए।

 

मैं अपने कमरे में जाकर कॉलेज के कुछ assignments करने बैठी। रत के 11.30 बजे मैंने अपने assignments खतम किये और हॉल में सोफे पर बैठकर TV ऑन किया और late night अंग्रेजी मूवी देखने लगी। उस समय मैंने खुले गले वाले V शेप की सिल्क की स्लिप पहने थी और अंदर ब्रा नहीं पहनी। वह स्लिप सिर्फ चूचियों को छुपा रही थी। मेरे सफाचट पेट और नाभि खुले थे। ऊपर भुजाये का पास भी स्लिप सिर्फ स्ट्रैप्स ही थे। सिल्क का ही ढीला शॉर्ट्स पहनी थी, जिसकी वजह से मेरे गोरे, मुलायम जाँघे और नीचे पिंडलियाँ नंगे थे। मैंने सिर को हैंड रेस्ट पर रखी और आराम से लेटी थी। मेरा एक पैर नीचे कारपेट पर थी तो दूसरा सोफे दुसरे हैंड रेस्ट पर रख कर मैं मूवी देख रहीथी। चैनल पर adult मूवी आ रही थी और मैं उस नंगे सीन एन्जॉय कर रही थी।

 

रात के 11.30 बजे थे। पहली मन्ज़िल पर नानाजी गहरे नींद में होंगे। वह नीचे नहि आयंगे I यह सोचकर में आराम से मूवी देख रहीथी। पिक्चर में एक जवान लड़का, एक खूबसूरत जवान लड़की को जो की मेरे उम्र की थी से सेक्स कर रहा है। वह सन देखते ही मेंरी बुर में मदन रास रिसने लगा और जाँघों के अंदर कहीं खुजली शुरू होगई। मेंरा बुर पूरा गीला होगया। मैंने कंधे पर से स्लिप का स्ट्राप निकाली और उसे नीचे खींची। मेरे निपल बहार आगये। मेरे बहिना हाथ से बाहिना निप्पल को मसलते, मैंने मेरे शॉर्ट्स के नडा खींची और दाहिना हाथ अंदर घुसेड़ कर मेरे बुर के साथ खिलवाड करने लगी।

 

कुछ ही मिनिटो में मेरे उँगलियाँ मेरे प्रि कम से चिके और गीले होगए। मैंने ऊँगली मेरो चूत से निकाली और उन उँगलियों को नाक के पास लेगयी और सूँघि। एक अजीब सी स्मेल आ रही थी। "वाह मेरि चूत की स्मेल भी क्या मस्ती से भरा है" मैं सोची और उन उँगलियों को मुहं में रख कर सरे रस को चाट गयी। मेरे उस नमकीन स्वाद से में बहुत उत्तेजित ही गयी।

 

खूब चाट ने की वजह से मेरि उँगलियाँ थूक से चिपद गए है, उसे मैंने अपने चूत के होटोंसे खिलवाड़ करते और मेरे लोए बटन से कहते मूवी का स्वाद ले रहीथी। "आअह्ह्ह...उफ्फ्फ...ओहोह...उफ़..ससस..." मेरे मुहं से एक मीठी कराहे निकलने लगी। "आअह्ह्ह... ममम... मैं खलास होने वाली थी की मैंने सीढ़ियों पर पदचाप सूनी। शायद नानाजी नीचे आ रहे थे। "मै गॉड यह बूढ़ा इस समय नीचे क्यों आ रहा है?" मैं सोची।

 

TV को स्विच ऑफ करने का समय नहीं था। जल्दीसे मैने अपनी उँगलियाँ अपने लव चैनल (चूत) से निकली और मेरे शॉर्ट्स को कमर के ऊपर खींचली। मेरे कोहनिको मैंने अपने आंखोंपर लगाई और TV देखते, देखते सोने का नाटक करने लगी। नियंत्रित रूप से स्वास भी ले रहती ताकि देखने वाले यह सोचे की TV देखते सो गयी है। टीवी में क्या चल रहा है यह भी नहीं पता ऐसे बहना कर रहीथी। नानाजी नीचे TV रूम अये और वह TV देख ने लगे, मुझे मालूम पड़गया। उन्हें मालूम हो गया की मैं क्या देख रहीथी। मेरे दिल ढब ढब धड़कने लगा। नियंत्रित स्वास और दोल की धड़कन से मेरे उन्नत उरोज ऊपर नीचे हो रहे थे। TV स्क्रीन से आने वाली रोशिनी मेरे ऊपर गिर रहीथी। उसके सिवाय हॉल में दूसरा रोशिनी नहीं थी।

 

कोहिनी के नीचे की छोटीसी झिरी से मैंने देखा की नानाजी का नज़र एक बार TV पर आने वाली सिनेमा पर तो एक बार मेरे पर फिसल रहे थे। तभी मेरे नज़र नानाजी के धोती पर पड़ी। उनके जाँघों के बीचमे उभार आगया है। वह उभार किसका है मुझे मालूम है। धोती के अंदर उनका मर्दानगी खूब अकड़ कर लम्बा होगा और उछल खूद कर रहीहै। नानाजी अपने लंड को उँगलियों से मसल रहे थे। अनजाने में ही मैं उत्तेजित होने लगी और नानाजी के हरकत को मज़े लेते चाव से देख रहीथी।

 

जैसा की मैने कहा, मैं अपने आँखों पर मेरी कोहनी रख कर सोने का बहाना कर रही थी। नानाजी मेरे बिलकुल पास आगये यह बात मालूम पड गयी। उन्होंने सोफे के पास आए झुककर मेरे नीचे लटकते टांग को थोड़ा और चौड़ा किये और मेरे टांगों के बीच बैठ गए। कुछ देर मुझे देखते रहने का बाद उन्हीने धीरेसे मेरे पैर के नंगे भाग को धीरेसे सहलाने लगे। मेरे सारे शरीर में झुर झुरिसि हुयी। मेरे घुटनों और जाँघों पर नानाजी के हाथ की गर्मी मुझमे मस्ती पैदा कर रहीथी।

 

मैं खामोशी से सोने का बहाना कर रही थी। कुछ देर ऐसा करनेके बाद अब नानाजी के हाथ मेरे जाँघों के अंदर के तरफ फेर रहे है। मुझे गुद गुदी सी होने लगी, फिर भी मैं हिली ढूली नहीं और न ही मैंने अपने हाथ को मेरे आँखों पर से निकाली। मैं हिली ढुली नहीं तो उन्हें और हिम्मत आगयी और धीरे से अपना हाथ मेरी तिकोन के उभार पर रख धीरेसे दबाये। फिर भी मेरे में कुछ हरकत न पाकर अब अपनी तर्जनी ऊँगली को मेरे चूत की फुली होंठों पर ऊपर से नीचे तक चलाने लगे।

 

शशांक भैय्या से करवाने के बाद मेरे में सेक्स की चाहत बढ़ गयी। नानाजी अब क्या करेंगे यही सोचते मैं खामोश पड़ी थी। एक बार गुद गुदी की वजह से मैं थोड़ी सी हिली और नानाजी झट अपने हाथ निकले। शायद वह समझ गए की मैं जगी हुई हूँ। मैं फिर से बिना हिले ढूले पड़ी थी और फिर से अपना हरकत शुरू कर दिए। नानाजी मेरे कमर के पास अपने घुटनों पर बैठे और धीरेसे मेरी स्लिप को ऊपर उठाये। उनकी हरतों से मरे में फिर से झुर झूरी सी होने लगी। और मेरे रेंगते खड़े होगाये। वह आगे झुके तो उनका गर्म सांस मेरे नहीं और पथ पर पड़ने लगी।  कराह को मैं बड़ी मुश्किल से रोक पायी। फिर उन्होंने अपना जीभ को मेरे नाभि में घुमाने लगे। " मैं अंदर ही अंदर कराही।

 

नानाजी धीरे से मेरे सर के पास आये और मी ऊपर झुके। अब का गर्म सांस मेरे बहिना (left) चूची पर फील करने लगी। अपने जीभ से मेरे चूची के घुंडी के इर्द गिर्द फिराने लगे। नेर चूचियों में एक अजीब सी मस्ती भरी थी। फिर उनका नजर मेरे खांक पर गिरी। एक दिन पहले ही मैंने कांक और मेरी बुर पर बाल साफ़ किये थे। इसी वजह से मेरी खाँख बिना बालों के चमक रही थी। 


मैं अभी भी में राइट हैंड को मेरे आँखों पर रखी थी। और कोहिनी के पास छोटी सी झिरी बनाकर मैं सब देख रहीथी। वाह धीरे से मेरी खांख पर झुके और अबमैं उनका गर्म सांस वहां महसूस करने लगी। एक बार मेरे खाँख को सूंघ कर फिर अपना जीभ निकल कर मेरे पूरी खाँख को नीचे से ऊपर तक चाटने अलगे। इनके इन हरकतों से नीचे मेरी जाँघों के बीच की मेरी मुनिया खूब रिस ने से मेरी शॉर्ट्स जिगट हो गए।

 

"क्या मेरी नाती सच में ही नींद में है?" कह कर जब मेरी खाँख को चाटी अपने जीभ मेंरे होंठों पर रखकर मेरे मुहं के अंदर दाल ने की कोशिश की। अब मुझे अपने आप को संभल न बहुत मुश्किल होगया है। फिर भी तक संभाली और नींद का बहाना कर रहीथी। अपने जीभ को मेरे होंठों पर फिराने के बाद अब उनकी दृष्टी मेरे बुर पर पडी।

 

धीरेसे अपना उँगलियाँ मेरी बुर पर लाकर मेरी बुर को शॉर्ट्स के ऊपर से ही हलका सा रगड़ न शुरू करे। मामाजी के उँगलियाँ और मेरी बुर में बेच एक सिल्क की शॉर्ट्स के अलावा लुक नहीं था। एक हाथ की उँगलियाँ मेरी बुर को रगड़ रही है तो दुसरे हाथ के उँगलियाँ मेरे तिकोन के उभर को दबाने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे खूब पहली चुत में हजारों चींटियां रेंग रहे हो। जैसे नानाजी ने मेरे चूत को होंठों को दबा रहे थे मेरे सारे शरीर में गुद गुदी सी होने लगी। फिर भी मेरे यहाँ से कोई प्रतिक्रिया ना पाकर उन्हने अपना बुर रगड़ने का काम चालू रखे।

 

फिर मेरे शॉर्ट्स की इलास्टिक खींचकर कमर के यहाँ अपना हाथ अंदर घुसेड़दिए। अब नानजी के उंगलयां मेरे नंगे बुर की होंठों के साथ खेलने लगे। मेरे साए सरेर में झुर झुरिसि होने लगी। फॉर भी अपने आप को सम्भलते सोने बहाना जारी रखी। कुछ देर ऐसे ही खेलने के बाद अपनी उँगलियाँ निकल कर अपने मुहं में रखे और सरे लॉस लेस को चाट गए। एपीआई उँगलियों को अपने थूक से फिर से चिकना बनाकर फिर से हाथ अंदर डालकर छूट ले पुत्तियों को चौड़ा कर अपनी बीचकी ऊँगली को मेरो गीली छूट के अंदर डालने लगे। अनजाने में ही मेरे पुत्तियाँ उनकी ऊँगली को जकड कर अंदर को खींचने लगे।

 

नानाजी वैसे ही थोड़ी देर तक मेरे छूट के होंठों से खिलवाड़ काने का बाद मेरे शॉर्ट्स को नीचे खींचने लग्गे। शॉर्ट्स धीरे धीरे मेरे बादबान से नीचे सरकने लगी। मरे कमर के नीचे और फिर मेरे जाँघोंसे भी नीचे लेकिन वह मेरो नितम्बो के नीचे फँसी हुई थी, मैंने नींद में कुन मनाने का बहन कर मेरे कमर को थोड़ा ऊपर उठाई।

मेरे शॉर्ट्स मेरे नितम्बोंके नीचे और नीचे मेरे घटंन तक आगयी। फिर मुझे मेरी उभर दार बुर पर मामाजी के गर्म सांस की आभास हुआ। मेरी अब संभालना कठिन हो रहा था। इतने में उन्होंने मेरे बुर के पत्तों को चौड़ा कर अपना नाक उन पुत्तो के बीच रख कर सूंघे और उससे वहां दबाने लगे। फिर अपने जीभ को उस छीर में घुसेड़ कर घूमाने। मुझे इतना मज़ा आने लगा की मैंने तो नानाजी को वैसे ही अपने जीभसे मेरी बुर को चोदने की तमन्ना करने लगे।

 

तब तक मेरी बुर पानी रिसने लगी। दही, धीरे मेरी रिसती बुर को नीचे से ऊपर तक चाटये हुए हलके से मेरी घुंडी को दोनों लियों बीच लेकर मसलने लगे। मैंने वैसे ही सोने का बहन कर उनके हरकतें का आनन्द ले राही थी। फिर सेअपनी उँगलियों पर थूक कर उस से अपनी उँगलियों को चिकना कर मरो बुर को रगड़ने लगे। दर से रिसने वाली मदन रास से मेरी बुर पहले से ही चिकनी हो चुकी है।

 

उन्होंने फिर से मेरी गीली चूत को चाटने लगे और मेरी घुंडी को tease करने लगे। ऐसे कुछ देर खेलने का बाद अब उन्हीने मेरी स्लिप को ऊपर उठाने लगे।

 

मैंने मेरी नींद को कंटिन्यू करने का बहाना कर मेरी पीठ को ऊपर उठायी। नानाजी ने मेरी स्लिप को पूरा ही उअप्र उठाकर मेरे गले के पास डाल दिए। और अब मेरी उभारदार चूचियां और उनके गुलाबी निप्पल्स उनके आँखों के सामने नंगे थे। अपनी उँगलियों से मेरी होंठों को सितार बजाकर, दुसरे हाथ में मेरी चूचियों को लेकर दबाने लगे। फिर अपने दौड़ने हाथों से दोनों उरोजों को दबाते अपने जीभ को मेरी चूची की घुंडी इर्द गिर्द घुमाने लगे।" कह कर में धीरे से कुन मुनाई।

 

"क्या मेरी नाती सचमे ही नींद में है....?"

 

मैंने धीरे से आँखे खोली और नानाजी को देख कर हलकी सी मुस्कान दी और फिर से आँखे बंद कर ली।

 

नानाजी ने हलके से मेरी जांघों को चौड़ा करने लगे और आराम से नीचे कारपेट पर घुटनों बल बैठ कर मेरी बुर को चाटने, चुभलाने और खाने लगे। उनका ऐसा करना मुझे इतना पसंद आया की मैं मेरी कमर ऊपर उठा उठाकर अपनी चूत को खूब अच्छी तरह चाटने में उनकी मदद करने लगी।

 

मेरे ऐसा कमर उछलने से उन्हें बहुत ही हिम्मत मिली, और उन्होंने मेरि शॉर्ट्स को पूरा खींच कर मेरे पैरों से निकाल फेंके। फिर उन्होंने अपनी धोती भी खींच फेंकी और अपना तगड़ा, और मोटा लवडे को हाथ में लेकर हिलाने लगे। वह एक दम मक्के की बुट्टे की तरह थी। वह फिर अपनी थूक से अपने लवडे को गीला कर मेरी चूत को होंठों को टच किये।

Oh God ... उनका सुपडे की गर्माहट मेरी बुर पर इतना अच्छा था की मैं अपने आप मेरे जाँघे और चौड़ा कर मेरे मुलायम नितम्बो को ऊपर उठाई। नानाजी ने धीरे से अपना उस मुश्टन्ड मेरे में घुसेड़े। मुझे ऐसा लगा की गर्म लोहे की सलाख मेरे में घुस रही हो। वैसे मैं पहले से ही शशांक भैय्या से चूदी थी इसी लिए उनका सुपाड़ा पूरा अंदर चला गया। उस सुपाडे का रगड़ मेरे बुर की अंदरी दीवारों पर गुद गुदी पैदा करने लगे।

 

नानाजी मेरे जांघों को और चौड़ा करने लगे, मैंने अपनी जंघों की मांस पेशियों को ढीला करदी। उन्होंने मेरे टांगों को अपने भुजावों पर रखे। अब पोजीशन ऐसी थी की वह अपनी नाती यानि कि मेरे गीले बूर में अपना मोटा और तगड़ा लुंड पेलने के लिए तैयार थे। अपने लवडे को उन्हों ने मेरी जवान बुर पर रख कर अंदर दबाए और उनका सूपड़ा 'गछ' के साथ अंदर। "आअह्ह्हा।।।ससस..." मैंने अपने होंठों से निकलती कराह को रोकने की कोशिश की। वह अपनी लुंड को अंदर और बहार करते मुझे चोदने लगे। थोड़ा थोड़ा कर नानाजी का लुंड मेरे उसमे पूरा घुस गया। जब पूरा अंदर चला गया थो उन्होंने एक जोर का धक्का दिए। में अब अपने आप को रोक न सकी और  आवाजें मेर मुहं से निकल पड़े। उनके हर शॉट के साथ मैं अपनी गांड उछालते चुदाई की आनंद ले रहीथी।

 

अब तो उनको मालूम है मैं जगी हूँ। अब उनका चोदना जोर पकड़ने लगा... उनके हर धक्का मेरे तिकोन पर जम कर पड़ रही है। मेरे मस्त छातियों को दोनं हाथोसे पकड़ कर मींजते और मेरे होंठों को चुभलाते हुए "गग्गुओंणरणररर" के आवाजें उनके मुहं से निकल रहे थे। ऐसा पांच छह मिनिट मुझे चोदने के बाद मैंने उनके शरीर में अकड़न महसूस की। "ऊऊउ उउउउम्मम्मम्म" एक बहार फिर जोर से कराहे। बस उनका शरीर और अकड़ा और अपने गर्म वीर्य से मेरी बुर को भर दिए। एक गहरी moan के साथ उनका शरीर झन झना उठी और अपना लव स्टिक (love stick) सोडा सायफन के तरह मेरे बुर को भर ने लगी। नानाजी का गर्म वीर्य मेरे चूत के दीवारों से बहार बहने लगी।

 

मैं भी खलास होने को थी। मेरे शरीर एक मीठे अनुभव से गद गद हो उठा। मैंने अपने चूत और गांड के मांस पेशियों को टाइट करी। मेरे दोनो हाथ नानाजी के कमर के गिर्द लपेट उन्हें मेरे ऊपर खींची और जोरसे उन्हें अपने से जकड की।  की मीठी कराह मेरी मुहं से निकली और मेरे बुर की पुत्तियों से उनके लुंड को जकड़ कर में भी खलास हो गयी और मेरी बुर अपना मदन रस छोड़ने लगी।

 

थोड़ी देर बाद नानाजी ने मेरी आँखों में देखे। उनके मुखमे खुशी धमक रहीथी। मैंने भी उनकी आँखों में चाहत से देखी और हलके से मुस्कुरा दिया। उन्होंने भी मुस्करा कर मेरी आँखों को चूमे। हम दोनों में कुछ बातें नही हुयी, बस अब तक हुयी चुदाई का आनंद उठा रहे थे। वह कोई 54 - 55 साल के है और मई 19 की। मैंने अपने दोनों हाथों से नानाजी के सर को पकड़ कर मेरी ओर खींची और उनके होंठों को मेरे में लेकर किस किया।

 

उनका लंड अभी भी मेरे चूत में है। मुझे एक बार कस कर चूमे और फिर जवान चूचियों को पीने लगे। जब उनका बहार निकला तो वह बिलकुल नरम पड गयी है, और मेरे बुर में से हम दोनों का रस बाहर को बह कर मेरे नितम्बी को और मेरी गांड में भी घुसने लगे। सारा जगह चिप चिपाहट होगया। नानाजी ने अपने मुहं वहाँ रखे और सारा रस अपने जीभ से चाट कर साफ़ कर दिए। जैसे ही नानाजी मेरे बुर को चाट ने लगे उसमे फिर से खुजली होने लगी।

 

नानाजी ने मुझे अपने गोद में बिठाये और मेरे अंगों के साथ खेलने लगे। मेरी निप्पल्स को सूचक कर रहे थे और मेरी पूरी चूचिको नीचे से लेकर ऊपर तक चाट रहे थे। मेरे चूतड़ों के बीच उनके मर्दानगी तन कर फिर से फुफकारने लगी।

 

मैं नानाजी सोफे पर बैठे थे। मैंने उनके गोद से उतरी और नीचे कारपेट पर पालथी मारकर बैठी, नानाजी के टाँगे नीचे लटक रहे है और उनके टांगों के बीचमे उनका मुरझा सुस्त पड़ा है। में नीचे उनके टैंगो बीच बैठी और उनके लंड को मुट्टीमे पकड़ी, से ऊपर नीचे करने लगी। इसे मसाज करने लगी "हेमा। ..हहहह ममहहाआ...." नानाजी खुशी से गुर्राए।

 

वह अब पूरी तरह खड़ा होगया और मैं उसे मुट्टीमे लेकर नापी। पूरा एक बालिश्त से ऊपर है उनका। ननजी का खड़ा लंड देख कर मेरे मुहं में फिर से पानी आगया मैं उसे मेरे मुहंमे लेकर चूसने करने लगी। कभी कभी मेरे जीभ को उनके सुपडे के ऊपर फिरा रही थी। उनका बहुत लम्बा है, मैं उसे पूरा का पूरा मेरे मुहं में लेने की कोशश किया केकिन ना कामयाब रही। एक चौथाई के बराबर बहार ही रह गया। अब नीचे मेरे जांघों के के बीच फिर से मदन रस रिसकर चूत होंठों तक बाह रही है।

 

"आअह्ह। ... हेमा... मेरी प्यारी... बहुत अच्छी चूस रही हो.. आएं...वाइस ही चूसो.. शाबाश... जिस मस्ती से तुमने मेरा सब्बाक लो अपने में लिया है... ला जवाब है.. वंडर फूल.. आख़िरी में तुम्हारी बुर का मेरे उसके गिर्द जकड़ना तो बोलो मत... बिलकुल प्रभा की तरह है तेरी बुर भी... वही जोश वही मस्ती" वह बढ़ बडाने लगे।

 

उनके बातें सुनकार में चौंक गयी और चकित होकर उन्हें देखने लगी। क्या नानाजी ने माँ को....

 

"क्यों चकित हो गयी क्या? अरी.. प्रभा.. तेरी माँ... वह भी तेरे जैसे ही जोश से चुदवाती थी। मैंने तुम्हारे माँ को ही नहीं, शुभा,तुम्हारी बड़ी माँ को और विभा छोटी माँ को भी चोदा है। तुम्हारी माँ और छोटी माँ दोनों मेरे लंड को पहले लेने के लिए लड़ते झगड़ते थे।" ननजी कह रहे थे।

 

मम्मी बहुत ही गर्म औरत है और खूब मज़े से चुद्वाती है, यह बात मुहे मालूम है, जिस दिन मैं शशांक भैया से करवाई थी उसी रात मैं और मेरी छोटी बहन रीमा ने माँ को भैया से चुदवाते देखे है। (पढ़िए मेरे लिखा जुआ 'मेरे शशांक भैय्या) .

 

नानाजी का मर्दानगी फिर से टाइट होगई जैसे इस्पात का रॉड हो। मैं उसे अपनी मुट्टी में जकड़ी थी। उन्होंने मुझे हाथ पकड़ कर खींचे खुद सोफे से उठकर एक गुड़िया की तरह मुझे उठाकर अपने कंधे पर डा ले। उनका एक हाथ मेरे नितम्बो के नीचे संभाली है तो दूसरा हाथ से मेरे स्पंजी नितम्बों को दबाते हुए ऊपर अपने कमरे में लगाए और, मुझे बेड पर लिटा दिए, अपनी कमीज उतार फेंके। अब वह पूरा नगनवस्ता में एक बर्थडे बॉय लग रहे है। उनका लंबा, मोटा लावड़ा उनके जहंघो के बीच लटक रही है। में भी कमऱ के नीचे नंगी हूँ। ऊपर सिर्फ स्लिप थी जिसे मैंने उतर नीचे डाल दी। अब मैं भी नानाजी के तरह पूरी नंगी हूँ।

 

नानाजी ने मुझे औंधा किये और मेरी नितम्बों को ऊपर उठाये। मैं उनका मंतव्य समझ गयी और बेड पर चौपाया छुपाया बनकर मेरी गांड कॉपर उठई एक कुतिया की तरह। दोनों घुटनों को पैलाकार मेरे टांगों को चौड़ा किया। दोनों हाथों को कोहिनी के पास मोड़कर बेड पर रखी और मेरे सिर को हाथों पर रखी, फिर मेरे गांड को ऊपर उठई।

 

अब मैं नानाजी मुझे पीछे से लेने के लिए तैयार हूँ। नानाजी मेरे पीछे आए अपने घुटनों पर बैठकर पीछे से मेरी बुर को खाने लगे। में इतना गरमा गयी हूँ की मेरे बुर में से गर्म हवाएं निकलने लगे और वह फूल के पाव रोटी की तरह थी।

 

नानाजी अंदर.. यह और अंदर...पूरा जानेदो तुम्हारे जीभ को अपने नाती की चूत में ... कितन अच्छा है. आअह ह.. मेरी बुर की लालसा ....बढ़ रही है.आमम्मा.... नानाजी कैसी मेरी। .. तुम्हे अच्छा चा लगा रहा है ना... बोलो नानाजी कैसी है मेरी चूत t.. क्या एह मेरी माँ जैसी है या मेरी छोटी माँ जैसी... उम्म्म और खाजाओ आहहहआ..." नानाजी के मुहं पर चूत को दबाते मई बड़ बड़ा रहीथी।

 

"आह्ह...हेमा तेरी तो मस्त है.... तेरी माँ से भी अच्छा.. और तेरी छोटी माँ से भी अच्छा... साली तु भी क्या यद् करेगी.. ले अपनी नाना के जीभ को अपने बुर में... क्या नमकीन माल है.. हाँ...हाँ.. बस..वैसे ही रगड़ अपनी बुर को नानाके मुहं पर. शभाष..आह..हां...".नानाजी मेर गीली, मस्ती से भरा चूत को चूसते ते कहने लगे।

 

में अपनी बुर को उमके मुहं पर रगड़ ते " नानाजी...न..ना.जी... और चोदो मेरी चूत को... फाड़ दो इस रंडी को.. ममम..." मैं कही।

 

मेरी पोजीशन को समझ कर नानाजी ने उठे और मेरे पीछे आकर मेरी कमर को दोनं हाथों से पकडे और अपना सूपड़ा मेरी बुर की सुराख पर रख कर रगड़ने लगे।एक मीठी कराह मेरी मुहं से निकली। फिर उन्होंने सुपडे को सुराख के बीच रख कर एक जोर का शॉट दिए। आह..ह.." अब मैं दर्द से कराही। उनका गोल मोटा सुपाड़ा मेरी बुर को चीरती अंदर घुस गयी। मेरे स्पंजी नितम्बों को दबाते। . कभी कभी.. एक चपत लगते अपने चमड़े की चढ़ को अंदर बाहर पंप कर ने लगे। मेरी मदन रस से अच्छी तरह ऑइलिंग हुयी मेरी चूत में उनका लंड पिस्टन रोड की तरह आगे पीछे हो रहीथी।

 

मैं अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ते गांड को ऐ पीछे क्र रहीथी। उन्होंने मेर लटक थी चूही को पकडे और उसे दबाते मुझे हमच , हमच कर चोदने लगे।

 

"अम्माम्माम्मा... नाना..नानाजी.. मैं खलास हो रही हूँ...ऊम्मम... मारो। .और जोर से मारो अपने तोप को मेरे अंदर... आअह " कह कर मैं झाड़ गयी।

 

"प्यारी.. आह.. कितनी टाइट है तेरी... आह.. यह. अब तेरी बुर मेरी rod को जकड़ रहि है.. ऐसे ही जकड... तेरी माँ जैसी ही तू भी बहुत गर्म लड़की है... आह.. मैं भी खलास ही रहा हूँ.. ले नानके गर्म लावा अपने में।" कह!

 

उनका शरीर जहां झनाहट मुहे मालूम हो रहा थे। Iउनके मुहं के ये गुर्राह मैंने सूनी। मेरे नितम्बों को मसलते एक बड़ा शॉट उन्होंने मेरी अंदर दिए और फिर पाना गर्म लावा से मेरी बुर को भरने लगे। मैंने उनका गर्म लस लस का अनुभव किया और मेरे चूतड़ों को पीछे दखेलते मीठे से करहा " नानाजी.. नानाजी.. मेरे अच्छे नानाजी.. आअह कितना प्यारा है तुम्हार आयेह डंडा... मेरी चूत आप के लंड के हमेशा तैयार रहेगी... मैं तुमसे हमेशा चुदावउँगी। नानाजी तुमजब भी यहाँ ए तो मुझे चोदे बिना नहीं जाना। अगर मेरि शादी होने पर भी मई आपसे चुदावउँगी " कहति माई अपना गांड पीछे धकेली और झाड़ गयी। पाठकों यह मेरे एक अच्छा चुदाई है.. ऐसे एक बड़े उम्र वाले से।

 

खलास होने के बाद मैं अउर नानजी उसी हालत में लुक देर रहे, फिर उन्होंने मेरे बुर से अपना लंड निकली। हम दोड़नों का मदन रस जो हम में से छूटा है मेरे अंदर से बहकर मेरे जांघों को तर करते नीच बहने लगी। नानाजी ने झुके और सारी रस चाट चाट कर साफ़ किये। जब तक चार्ट रे हे की मेरे छूट की घुंडी में फिर से खड़ापन आ गया,, और बुर में फिर से खुजली होने लगी। मई भी नानाजी प्यारे सिपाही को ममेरे हाथों स स साफ़ की उसे दुलारने लगी।


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