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मेरी सगी मौसेरी बहन की चुदाई की सेक्सी हिंदी कहानी

मेरे मौसा के लड़के की शादी की बात है मेरे मौसा के लड़के के मौसा की लड़की यानि मेरे मौसेरे भाई की ममेरी बहन, जिसकी नई नई शादी हुई थी, पूरे ब्याह में बस वो ही वो चमक रही थी। उसकी शादी १५ दिन पहले ही थी। वैसे तो मैं तीन चार दिन पहले ही शादी में पहुँच गया था पर काम में व्यस्त होने के कारण मेरी किसी पर भी नजर नहीं पड़ी थी। शादी से एक दिन पहले वो आई, नाम तो स्नेह था उसका पर सब उसको आकांक्षा कह कर ही बुलाते थे। ऐसा नहीं था कि मैंने उसको पहले कभी देखा नहीं था पर तब वो बिल्कुल सिम्पल बन कर रहती थी, मेरे सामने आने में भी शर्माती थी।


फिर मौसा के साले की लड़की थी तो रिश्तेदारी के कारण भी मैं उसकी तरफ ध्यान नहीं देता था। वो और मैं कई बार एक साथ गर्मी की छुटियाँ मेरे मौसा के घर एक साथ बिता चुके थे पर मैंने कभी उसके बारे में सोचा भी नहीं था। पर आज जब वो आई तो मुझे ही गाड़ी देकर उनको लेने के लिए स्टेशन भेज दिया । जैसे ही वो ट्रेन से उतरी तो मैं तो बस उसको देखता ही रह गया, लाल रंग की साड़ी में लिपटी हुई क़यामत लग रही थी वो। ज्यादा मेकअप नहीं किया हुआ था पर फिर भी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।

 

मुझ से ज्यादा तो मेरे लंड को वो पसंद आ रही थी, तभी तो साले ने पैंट में तम्बू बना दिया था। उसके पीछे पीछे उसका पति ट्रेन से उतरा तो सबसे पहले मेरे मन और जुबान पर यही शब्द आये 'हूर के साथ लंगूर.' एकदम काला सा और साधारण शरीर वाला दुबला सा लड़का। मैं तो उसको पहचानता नहीं था, आकांक्षा ने ही उससे मेरा परिचय करवाया, पता लगा कि वो गवर्नमेंट नौकरी करता है | तब मुझे समझ में आया उनकी शादी का अभिजित से हुयी है । मौसा के चचेरे साले ने सरकारी नौकरी वाले दामाद के चक्कर में अपनी हूर जैसी लड़की उस चूतिया के संग बियाह दी थी। खैर मुझे क्या लेना था।

 

मैंने उनके साथ लग कर उनका सामान उठाया और गाड़ी की तरफ चल दिए। मैं उस चूतिया को अपने साथ आगे वाली सीट पर बैठना नहीं चाहता था क्यूंकि जब से मैंने आकांक्षा को देखा था मेरे दिल के तार झनाझन बज रहे थे, लंड बाबा जीन्स की पेंट को फाड़ कर बाहर आने को बेताब हो रहे थे। कहते हैं ना किस्मत में जो लिखा हो उसको पाने की कोशिश नहीं करनी पड़ती, मैंने सामान गाड़ी में रखवा दिया। आकांक्षा का पति जिसका नाम अभिजित था वो खुद ही दरवाजा खोल कर पीछे की सीट पर बैठ गया।

 

मैंने उसको आगे वाली सीट पर आने को कहा पर वो बोला कि सफ़र के कारण सर में दर्द है तो वो पीछे की सीट पर आराम करना चाहता है। तो मैंने आकांक्षा को आगे की सीट पर बैठा लिया, गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा। वैसे तो वो अगले दो दिन मेरे आसपास ही रहने वाली थी पर मैं उसको कुछ देर नजदीक से देखना चाहता था इसीलिए मैंने छोटे रास्ते की बजाय लम्बे रास्ते पर गाड़ी डाल दी। आकांक्षा ने मुझे कहा भी कि 'हिमांशु इधर से दूर पड़ेगा!'

 

पर मैंने झूठ बोल दिया कि छोटे वाला रास्ता बंद है, वहाँ काम चल रहा है।

 

मैं आकांक्षा से हालचाल और शादी के बारे में बातें करने लगा, वो भी हंस हंस कर मेरी बातों का जवाब दे रही थी।

 

इसी बीच मैंने पीछे देखा तो श्रीमान अभिजित जी सर को पकड़े सो रहे थे।

 

मैंने बीच में एक दो बार गियर बदलने के बहाने आकांक्षा के हाथ को छुआ जिसका सीधा असर मेरी पैंट के अन्दर हो रहा था। लंड दुखने लगा था अब तो, ऐसा लग रहा था जैसे चीख चीख कर कह रहा हो 'मुझे बाहर निकालो. मुझे बाहर निकालो.' मैंने एक दो बार ध्यान दिया तो लगा कि जैसे आकांक्षा भी मेरी पैंट के उभार को देख रही है, पर जैसे ही मैं उसकी तरफ देखता, वो नजर या तो झुका लेती या फेर लेती। लगभग आधे घंटे में मैं उनको लेकर घर पहुँचा।

 

मौसा के लड़के ने जब पूछा कि इतनी देर कैसे लग गई तो मैंने आकांक्षा की तरफ देखते हुए कहा 'गाड़ी बंद हो गई थी!' तो वो अजीब सी नजरों से मेरी तरफ देखने लगी। मुझे पता नहीं क्या सूझी, मैंने आकांक्षा की तरफ आँख मार दी। आप ये कहानी अन्तर्वासना-स्टोरी डॉट कॉम पर पढ़ रहे है | मेरे आँख मारने से उसके चेहरे पर जो मुस्कराहट आई तो मुझे समझते देर नहीं लगी कि आधा काम पट गया है। फिर वो भी शादी की भीड़ में खो गई और मैं भी काम में व्यस्त हो गया।

 

इस बीच एक दो बार हम दोनों का आमना सामना जरूर हुआ पर कोई खास बातचीत नहीं हुई।

 

उसी शाम लेडीज संगीत का प्रोग्राम था, डी जे लग चुका था, शराबी शराब पीने में बिजी हो गये और लड़कियाँ औरतें तैयार होने में. पर मेरे जैसे रंगीन मिजाज तो अपनी अपनी सेटिंग ढूंढने में व्यस्त थे, मैं उन सब से अलग सिर्फ आकांक्षा के बारे में सोच रहा था कि कैसे वो मेरे लंड के नीचे आ सकती है।

 

उसकी दिन में आई मुस्कराहट से कुछ तो अंदाजा मुझे हो गया था कि ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी पर यह भी था कि शादी की भीड़भाड़ में उसको कैसे और कहाँ ले जाऊँगा।

 

रात को नाच गाना शुरू हो गया तो मैं भी जाकर दो पेग चढ़ा आया। जैसा कि मैंने बताया कि लेडीज संगीत था तो शुरुआत लेडीज ने ही की, वो बारी बारी से अपने अपने पसंद का गाना लगवा लगवा कर नाचने लगी, हम भी पास पड़ी कुर्सियों पर बैठ कर डांस देखने लगे।

 

कुछ देर बाद ही आकांक्षा नाचने आई, उस समय उसने काले रंग की साड़ी पहनी हुई थी। उसने भी अपनी पसंद का गाना लगवाया और नाचने लगी। हद तो तब हुई जब वो बार बार मेरी तरफ देख कर नाच रही थी और कुछ ही देर में उसने सबके सामने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे भी अपने साथ नाचने को कहा। मैं हैरान हो गया यह सोच कर कि बाकी सब लोग क्या कहेंगे। शराब का थोड़ा बहुत नशा तो पहले से ही था पर उसकी हरकत ने शराब के साथ साथ शवाब का नशा भी चढ़ा दिया और मैं उसके साथ नाचने लगा। करीब दस मिनट हम दोनों नाचते रहे और बाकी लोग तालियाँ बजाते रहे। डी जे वाला भी एक गाना ख़त्म होते ही दूसरा चला देता। शायद उसे भी आकांक्षा भा गई थी।

 

नाचने के दौरान मैंने कई बार आकांक्षा की पतली कमर और मस्त चूतड़ों को छूकर देखा पर आकांक्षा के चेहरे पर मुस्कुराहट के अलावा और कोई भाव मुझे नजर नहीं आया।

 

हमारे बाद मौसा की लड़की पद्मा नाचने लगी तो उसने आकांक्षा के पति को उठा लिया अपने साथ नाचने के लिए।

 

पर वो बन्दर नाचना जानता ही नहीं था।

 

बहुत जोर देने पर जब वो नाचा तो वहाँ बैठे सभी की हँसी छुट गई, वो ऐसे नाच रहा था जैसे कोई बन्दर उछल कूद कर रहा हो।

 

सबका हँस हँस कर बुरा हाल हो गया उसका नाच देख कर।

 

मेरे मौसा के लड़के ने बताया कि वो चार पांच पेग लगा कर आया है, साला पक्का शराबी था।

 

फिर सब ग्रुप में नाचने लगे।

 

आकांक्षा बार बार मेरे पास आ आ कर नाच रही थी।

 

सब मस्ती में डूबे हुए थे, मैंने मौका देखा और पहले आकांक्षा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और फिर उसकी पतली कमर में हाथ डाल कर डांस करने लगा।

 

एक बार तो आकांक्षा मुझ से बिलकुल चिपक गई और मेरे खड़े लंड की टक्कर उसकी साड़ी में लिपटी चूत से हो गई, मेरे लंड का एहसास मिलते ही वो मुझ से एक बार तो जोर से चिपकी फिर दूर होकर नाचने लगी।

 

रात को करीब दो बजे तक नाच गाना चलता रहा, धीरे धीरे सब लोग उठ उठ कर जाने लगे, आखिर में सिर्फ मैं, मेरे मौसा का लड़का, उसका एक दोस्त, आकांक्षा और मेरे मौसा की लड़की ही रह गए डांस फ्लोर पर। उसके बाद मौसा जी ने आकर डी जे बंद करवा दिया। नाच नाच कर बहुत थक गए थे, हम पास में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए। आकांक्षा भी थक कर हाँफते हुए आई और मेरे बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गई। मैंने जब पूछा कि 'लगता है थक गई?' तो वो कुछ नहीं बोली बस उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया। मुझे अजीब सा लगा क्यूंकि बाकी लोग भी थे वहाँ।

 

मैंने आकांक्षा के काम में धीरे से कहा कि मैं छोटे मौसा के घर की तरफ जा रहा हूँ तुम भी चलोगी क्या?

 

वो बिना कुछ बोले ही चलने को तैयार हो गई।

 

छोटे मौसा का घर दो गली छोड़ कर ही था, मैंने उसको आगे चलने को कहा, वो चली गई।

 

उसके एक दो मिनट के बाद मैं भी उठा और चल पड़ा तो देखा कि वो गली के कोने पर खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी।

 

'कहाँ रह गये थे. मैं कितनी देर से इंतज़ार कर रही हूँ।' मेरे आते ही उसने मुझे उलाहना दिया।

 

मैंने गली में इधर उधर देखा और बिना कुछ बोले उसको अँधेरे कोने की तरफ ले गया और उसकी पतली कमर में हाथ डाल कर उसको अपने से चिपका लिया। उसने जैसे ही कुछ बोलने के लिए अपने लब खोले तो मैंने बिना देर किये अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उसने मुझ से छूटने की थोड़ी सी कोशिश की पर मेरी पकड़ इतनी कमजोर नहीं थी। 'हिमांशु, तुमने बहुत देर कर दी. मैं तो बचपन से ही तुमसे शादी का सपना संजोये बैठी थी।' उसकी आवाज में एक तड़प मैंने महसूस की थी पर अब उस तड़प का कोई इलाज नहीं था सिवाय चुदाई के। क्यूंकि आप सबको पता है प्यार गया तेल लेने. अपने को तो सिर्फ चुदाई से मतलब है। मैं उसको लेकर छोटे मौसा के घर ले जाने की बजाय पीछे ले गया जहाँ मेरी गाडी खड़ी थी।

 

वहाँ पहुँच कर मैंने उसको गाड़ी में बैठने के लिए कहा तो वो बोली- इतनी रात को कहाँ जाओगे? सब लोग पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे?

 

मैंने उसको चुप रहने को कहा और उसको गाड़ी में बैठा कर चल दिया।

 

सब या तो सो चुके थे या फिर सोने की जगह तलाश करने में लगे थे, सारा शहर सुनसान पड़ा था, वैसे भी रात के दो तीन बजे कौन जागता मिलता।

 

मैंने गाड़ी शहर से बाहर निकाली और एक गाँव को जाने वाले लिंक रोड पर डाल दी। करीब दो किलोमीटर जाने के बाद मुझे एक सड़क से थोड़ा अन्दर एक कमरा नजर आया।

 

मैंने गाड़ी रोकी और जाकर उस कमरे को देख कर आया। गाँव के लोग जानते हैं कि किसान खेत में सामान रखने के लिए एक कमरा बना कर रखते हैं। यह कमरा भी वैसा ही था पर मेरे मतलब की एक चीज मुझे अन्दर नजर आई। वो थी एक खाट (चारपाई)

 

उस पर एक दरी बिछी हुई थी।

मैंने आकांक्षा को वहाँ चलने को कहा तो वो मना करने लगी, उसको डर लग रहा था। वैसे वो अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि मैं उसको वहाँ क्यूँ लाया हूँ।

 

क्यूंकि अगर उसको पता ना होता तो वो मेरे साथ आती ही क्यूँ।

 

मैंने उसको समझाया कि कुछ नहीं होगा और सुबह से पहले यहाँ कोई नहीं आएगा तो वो डरते डरते मेरे साथ चल पड़ी।

 

कुछ तो डर और कुछ मौसम की ठंडक के कारण वो कांप रही थी।

 

मैंने गाड़ी साइड में लगाईं और आकांक्षा को लेकर कमरे में चला गया।

 

कमरे में बहुत अँधेरा था, मैंने मोबाइल की लाइट जला कर उसको चारपाई तक का रास्ता दिखाया।

 

वो चारपाई पर बैठने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसको अपनी तरफ खींचा तो वो एकदम से मेरे गले से लग गई।

 

वो कांप रही थी।

 

मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर किया तो उसकी आँखें बंद थी। मैंने पहला चुम्बन उसकी बंद आँखों पर किया तो वो सीहर उठी, उसके बदन ने एक झुरझुरी सी ली जिसे मैं अच्छे से महसूस कर सकता था। फिर मैंने उसके नाक पर एक चुम्बन किया तो उसके होंठ फड़फड़ा उठे, जैसे कह रहे हो कि अब हमें भी चूस लो। मैंने उसके बाद उसके गालों को चूमा, उसके बाद जैसे ही मैंने अपने होंठ उसके दूसरे गाल पर रखने चाहे तो आकांक्षा ने झट से अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और फिर लगभग दस मिनट तक हम एक दूसरे के होंठ चूमते रहे, जीभ डाल कर एक दूसरे के प्रेम रस का रसपान करते रहे।

 

मेरे हाथ उसके बदन का जायजा लेने लगे, मैंने उसकी साड़ी का पल्लू नीचे किया तो उसकी मस्त मस्त चूचियों का पहला नजारा मुझे दिखा। बाईस साल की मस्त जवान लड़की की मस्त गोल गोल चूचियाँ जो उसके काले रंग के ब्लाउज में नजर आ रही थी, देखकर दिल बेकाबू हो गया, मैंने बिना देर किये उसकी चूचियों को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया। आकांक्षा के होंठ अभी भी मेरे होंठों पर ही थे। आकांक्षा ने मुझे मोबाइल की लाइट बंद करने को कहा।

 

मुझे भी यह ठीक लगा पर मैं पहले आकांक्षा के नंगे बदन को देखना चाहता था, मैंने आकांक्षा के कपड़े उसके बदन से कम करने शुरू किये तो आकांक्षा ने भी मेरे कपड़े कम करने में मेरी मदद की।

 

अगले दो मिनट के अन्दर ही आकांक्षा सिर्फ पैंटी में और मैं सिर्फ अंडरवियर में आकांक्षा के सामने था, मैं आकांक्षा के बदन को चूम रहा था और आकांक्षा के हाथ मेरे अंडरवियर के ऊपर से ही मेरे लंड का जायजा ले रहे थे।

मैं नीचे बैठा और एक ही झटके में मैंने आकांक्षा की पैंटी नीचे सरका दी। क्लीन शेव चिकनी चूत मेरे सामने थी, चूत भरपूर मात्रा में कामरस छोड़ रही थी, मैं चूत का रसिया अपने आप को रोक नहीं पाया और मैंने आकांक्षा की टाँगें थोड़ी खुली की और अपनी जीभ आकांक्षा की टपकती चूत पर लगा दी।

 

आकांक्षा के लिए पहली बार था, जीभ चूत पर महसूस करते ही आकांक्षा का बदन कांप उठा और उसने जल्दी से आपनी जांघें बंद कर ली। मैंने आकांक्षा को पड़ी चारपाई पर लेटाया और अपना अंडरवियर उतार कर आकांक्षा के बदन को चूमने लगा, उसकी चूचियों को चूस चूस कर और मसल मसल कर लाल कर दिया था। आकांक्षा अब बेकाबू होती जा रही थी, उसकी लंड लेने की प्यास इतनी बढ़ चुकी थी कि वो पागलों की तरह मेरा लंड पकड़ कर मसल रही थी, मरोड़ रही थी, आकांक्षा सिसकारियाँ भर रही थी। लंड को जोर से मसले जाने के कारण मेरी भी आह निकल जाती थी कभी कभी!

 

मैं फिर से आकांक्षा की जाँघों के बीच में आया और अपने होंठ आकांक्षा की चूत पर लगा दिए और जीभ को जितनी अंदर जा सकती थी, डाल डाल कर उसकी चूत चाटने लगा।

 

आकांक्षा की चूत बहुत छोटी सी नजर आ रही थी, देख कर लग ही नहीं रहा था कि यह चूत कभी चुदी भी होगी, पाव रोटी जैसी फूली हुई चूत जिसके बीचों बीच एक खूबसूरत सी लकीर बनाता हुआ चीरा।

 

उंगली से जब आकांक्षा की चूत को खोल कर देखा तो लाल रंग का दाना नजर आया। मैंने उस दाने को अपने होंठों में दबाया तो यही वो पल था जब आकांक्षा की झड़ने लगी थी। आकांक्षा ने मेरा सर अपनी चूत पर दबा लिया था, चूत के रसिया को तो जैसे मन चाही मुराद मिल गई थी, मैं चूत का पूरा रस पी गया।

 

रस चाटने के बाद मैंने अपना लंड आकांक्षा के सामने किया तो उसने मुँह में लेने से मना कर दिया, उसने पहले कभी ऐसा नहीं किया था।

 

मैंने आकांक्षा को समझाया- देखो, मैंने तुम्हारी चूत चाटी तो तुम्हें मज़ा आया ना. और अगर तुम मेरा लंड मुँह में लोगी तो मुझे भी मज़ा आएगा। और फिर लंड का स्वाद मस्त होता है। फिर आकांक्षा ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप मेरा लंड अपने होंठों में दबा लिया। आकांक्षा के नाजुक नाजुक गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों का एहसास सच में गजब का था। पहले ऊपर ऊपर से लंड को चाटने के बाद आकांक्षा ने सुपाड़ा मुँह में लिया और चूसने लगी। मेरा मोटा लंड आकांक्षा के कोमल होंठों के लिए बहुत बड़ा था। तभी मेरी नजर मोबाइल की घडी पर गई तो देखा साढ़े तीन बज चुके थे।

 

गाँव के लोग अक्सर जल्दी उठ कर घूमने निकल पड़ते हैं तो मैंने देर करना ठीक नहीं समझा और आकांक्षा को चारपाई पर लेटाया और अपने लंड का सुपाड़ा आकांक्षा की चूत पर रगड़ने लगा। आकांक्षा लंड का एहसास मिलते ही बोल पड़ी- हिमांशु, प्लीज धीरे करना तुम्हारा बहुत बड़ा है मैं सह नहीं पाऊंगी शायद। मैंने झुक कर उसके होंठों को चूमा और फिर लंड को पकड़ कर उसकी चूत पर सेट किया और एक हल्का सा धक्का लगाया। चूत बहुत टाइट थी, लंड अन्दर घुस नहीं पाया और साइड में फिसलने लगा।

 

मेरे लिए अब कण्ट्रोल करना मुश्किल हो रहा था तोमैंने लंड को दुबारा उसकी चूत पर लगाया और लम्बी सांस लेकर एक जोरदार धक्के के साथ लंड का सुपाड़ा आकांक्षा की चूत में फिट कर दिया।

 

'उईईई माँ मररर गईई.' आकांक्षा की चीख निकल गई।

 

मैंने जल्दी से आकांक्षा के होंठों पर होंठ रखे और बिना देर किये दो और धक्के लगा कर लगभग आधा लंड आकांक्षा की चूत में घुसा दिया।

 

आकांक्षा ऐसे छटपटा रही थी जैसे कोई कमसिन कलि पहली बार लंड ले रही थी। चुदाई में रहम करने वाला चूतिया होता है. मैंने चार पांच धक्के आधे लंड से ही लगाये और फिर दो जोरदार धक्कों के साथ ही पूरा लंड आकांक्षा की चूत में उतार दिया। आकांक्षा मुझे अपने ऊपर से उतारने के लिए छटपटा रही थी। पूरा लंड अन्दर जाते ही मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए और आकांक्षा की चूचियों को मुँह में लेकर चूसने लगा। 'हिमांशु.. छोड़ दो मुझे. मुझे बहुत दर्द हो रहा है. लगता है मेरी चूत फट गई है. प्लीज निकाल लो बाहर मुझे नहीं चुदवाना. छोड़ दो फट गई है मेरी!' मैं कुछ नहीं बोला बस एक चूची को मसलता रहा और दूसरी को चूसता रहा। कुछ ही देर में आकांक्षा का दर्द कम होने लगा तो मैंने दुबारा धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए।

 

आकांक्षा की चूत बहुत टाइट थी, ऐसा लग रहा था जैसे मेरा लंड किसी गर्म भट्टी में घुस गया हो और उस भट्टी ने मेरे लंड को जकड रखा हो।

 

कुछ देर ऐसे ही धीरे धीरे चुदाई चलती रही, फिर लंड ने भी आकांक्षा की चूत में जगह बना ली थी। अब तो आकांक्षा भी कभी कभी अपनी गांड उठा कर मेरे लंड का स्वागत करने लगी थी अपनी चूत में।

 

आकांक्षा को साथ देता देख मैंने भी चुदाई की स्पीड बढ़ा दी, आकांक्षा भी अब मेरा पूरा साथ दे रही थी- आह्ह्ह चोदो. उम्म्म. चोदो हिमांशु. मेरी तमन्ना पूरी कर दी आज तुमने. चोदो. कब से तुमसे चुदवाना चाह रही थी. आह्ह्ह. ओह्ह. चोदो. जोर से चोदो.

 

आकांक्षा लगातार बड़बड़ा रही थी, मैं कभी उसके होंठ चूमता कभी उसकी चूची चूसता पर बिना कुछ बोले पूरी मस्ती में आकांक्षा की चुदाई का आनन्द ले रहा था।

 

आठ दस मिनट की चुदाई में आकांक्षा की चूत झड़ गई थी, अब सही समय था चुदाई का आसन बदलने का।मैंने आकांक्षा को चारपाई से नीचे खड़ा करके घोड़ी बनाया और फिर पीछे से एक ही झटके में पूरा लंड आकांक्षा की चूत में उतार दिया।

 

आकांक्षा की चीख निकल गई पर लंड एक बार में ही पूरा चूत में उतर गया।

 

आकांक्षा की नीचे लटकती चूचियों को हाथों में भर कर मसलते हुए मैंने ताबड़तोड़ धक्कों के साथ आकांक्षा की चुदाई शुरू कर दी।

 

चुदाई करते हुए आकांक्षा की माखन के गोलों जैसी चूचियों को मसलने का आनन्द लिख कर बताना बहुत मुश्किल है। आकांक्षा की सिसकारियाँ और मेरी मस्ती भरी आहें रात के इस सुनसान जगह के माहौल को मादक बना रही थी। कुछ देर बाद आकांक्षा दुबारा झड़ गई, आकांक्षा की कसी हुई चूत की चुदाई में अब मेरा लंड भी आखरी पड़ाव पर था पर मैं अभी झड़ना नहीं चाहता था तो मैंने अपना लंड आकांक्षा की चूत में से निकाल लिया। लंड के चूत से निकलते ही आकांक्षा ने मेरी तरफ देखा- जैसे पूछ रही हो की क्यों निकाल लिया लंड. इतना तो मज़ा आ रहा था। मैंने आकांक्षा को खड़ा करके उसके होंठ और चूचियों को चुसना शुरू कर दिया। अभी आधा ही मिनट हुआ तो की आकांक्षा बोल पड़ी. हिमांशु क्यों निकाल लिया डाल दो ना अन्दर. मिटा दो प्यास मेरी चूत की!मैंने दरी चारपाई से उठा कर जमीन पर बिछाई और आकांक्षा को लेटा कर उसकी टाँगें अपने कन्धों पर रखी और लंड आकांक्षा की चूत पर लगा कर एक ही धक्के में पूरा लंड चूत में उतार दिया। मैं आकांक्षा को हुमच हुमच कर चोद रहा था और आकांक्षा भी गांड उठा उठा कर मेरा लंड को अपनी चूत के अन्दर तक महसूस कर रही थी। अगले पांच मिनट जबरदस्त चुदाई हुई और फिर आकांक्षा की चूत और मेरे लंड के कामरस का मिलन हो गया। आकांक्षा की चूत तीसरी बार जबरदस्त ढंग से झड़ने लगी और मेरे लंड ने भी अपना सारा वीर्य आकांक्षा की चूत की गहराईयों में भर दिया। चुदाई के बाद हम पांच दस मिनट ऐसे ही लेटे रहे।

 

फिर मैंने उठ कर घडी देखी तो चार बजने वाले थे। चार बजे बहुत से लोग मोर्निंग वाक के लिए निकल पड़ते है।

 

मेरा मन तो नहीं भरा था पर आकांक्षा की आँखों में संतुष्टि के भाव साफ़ नजर आ रहे थे।

 

मैंने उसको कपड़े पहनने को कहा तो नंगी ही आकर मुझ से लिपट गई और मुझे थैंक्स बोला।

 

कपड़े देखने के लिए मैंने मोबाइल की लाइट घुमाई तो दरी पर लगे खून के बड़े से धब्बे को देख कर मैं हैरान रह गया पर मैंने आकांक्षा से कुछ नहीं कहा।

 

मैंने कपड़े पहने और आकांक्षा ने जैसे कैसे उल्टी सीधी साड़ी लपेटी और हम चलने लगे पर आकांक्षा की चूत सूज गई थी और दर्द भी कर रही थी तो उससे चला नहीं जा रहा था, मैंने आकांक्षा को अपनी गोद में उठाया और उसको लेकर गाड़ी में आया।

 

तब तक गहरा अँधेरा छाया हुआ था, मैंने गाड़ी शहर की तरफ घुमा दी। पर अब डर सताने लगा कि अगर कोई उठा हुआ मिल गया तो क्या जवाब देंगे या हमारी गैर मौजूदगी में अगर किसी ने मुझे या आकांक्षा को तलाश किया होगा तो क्या होगा। पर फिर सोचा कि जो होगा देखा जाएगा।

 

मैंने गाड़ी मौसा के घर से थोड़ी दूरी पर खड़ी की और फिर अँधेरे में ही चुपचाप मौसा के घर पहुँच गए। आप ये कहानी अन्तर्वासना-स्टोरी डॉट कॉम पर पढ़ रहे है | पहले मैंने आकांक्षा को मौसा के घर के अन्दर भेजा और फिर खुद छोटे मौसा के घर जाकर सो गया। बारात रात को जानी थी तो मैं ग्यारह बजे तक सोता रहा।

मेरी नींद तब खुली कब आकांक्षा मुझे उठाने आई।

 

घर पर कोई रीत हो रही थी तो सब लोग वहाँ गये हुए थे, घर पर एक दो बच्चो के अलावा कोई नहीं था। आकांक्षा ने पहले तो मुझे हिला कर उठाया और जैसे ही मैंने आँखें खोली तो आकांक्षा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए। मैंने भी आकांक्षा को बाहों में भर लिया और थोड़ी देर तक उसके खूबसूरत होंठों का रसपान करता रहा। तभी बाहर कुछ हलचल हुई तो आकांक्षा जल्दी से मुझ से अलग हो गई। किसी बच्चे ने दरवाजा खोला था। तब तक मेरी आँखें भी खुल चुकी तो देखा एक लाल और पीले रंग की खूबसूरत साड़ी में लिपटी हुई खडी थी वो अप्सरा। उसको देखते ही मेरा लंड हरकत में आया जिसे आकांक्षा ने भी देख लिया। उसने प्यार से मेरे लंड पर एक चपत लगाई और बोली- बड़ा शैतान है ये! मैंने आकांक्षा को पकड़ना चाहा पर आकांक्षा हंसती हुई वहाँ से चली गई। मैं उठा और नहा धो कर तैयार हो गया।

 

बारात जाने में अभी तीन चार घंटे बाकी थे, मैंने आकांक्षा को चलने के लिए पूछा तो बोली- नहीं हिमांशु. रात तुमने इतनी बेरहमी से किया है कि अभी तक दुःख रही है मेरी तो..

 

पर मेरे बार बार कहने पर वो मान गई।

 

रात के अँधेरे में मैं आकांक्षा के हुस्न का सही से दीदार नहीं कर पाया था तो अब मैं दिन के उजाले में इस अप्सरा के जीवंत दर्शन करना चाहता था। आप ये कहानी अन्तर्वासना-स्टोरी डॉट कॉम पर पढ़ रहे है | मैंने उसको गाड़ी की तरफ जाने के लिए कहा और उसको समझा दिया कि कोई पूछे तो बोल देना कि मार्किट से कुछ सामान लाना है, बस वही लेने जा रहे हैं।

 

पर किस्मत की ही बात थी किसी ने भी हमसे कुछ नहीं पूछा और हम दोनों गाड़ी में बैठकर वहाँ से चल दिए।

 

अब समस्या यह थी कि जाएँ कहाँ?

 

होटल सेफ नहीं थे।

 

मौसा के लड़के ने एक दिन पहले ही बताया था कि वहाँ के कई होटलों में पुलिस की रेड पड़ी है।

 

अब क्या किया जाए?

 

इसी उधेड़बुन में था कि तभी याद आया कि मेरे कॉलेज के एक दोस्त का घर है यहाँ।

 

मैंने उसको फ़ोन मिलाया तो वो बोला कि वो किसी शादी में जाने के लिए तैयार हो रहा है।

 

मैंने उसके परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो पहले ही शादी में जा चुके हैं।

 

तो मैंने उसको थोड़ी देर मेरा इंतज़ार करने को कहा और फिर मैं सीधा उसके घर पहुँच गया।

 

आकांक्षा अभी गाड़ी में ही बैठी थी।

 

मैं उसके घर के अन्दर गया और उसको अपनी समस्या बताई।

 

मादरचोद पहले तो बोला- मुझे भी दिलवाए तो कुछ सोचा जा सकता है पर जब मैंने उसको बताया कि पर्सनल है तो उसने शाम पांच बजे तक के लिए मुझे अपने घर में रहने के लिए हाँ कर दी।

 

मैंने आकांक्षा को भी अन्दर बुला लिया।

 

आकांक्षा को देखते ही साले की लार टपक पड़ी पर जब मैंने आँखें दिखाई तो वो हँसता हुआ बाहर चला गया।

 

उसने बताया कि वो बाहर से ताला लगा कर जाएगा और जब हमें जाना हो तो एक दूसरा दरवाजा जो अन्दर से बंद था उसको खोल कर बाहर चले जाए और दरवाजा बाहर से बंद कर दे।

 

हमने उसको थैंक्स बोला और उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया।

 

उसके जाते ही हमने दरवाजा अन्दर से भी बंद कर लिया। आकांक्षा डर के मारे मेरे साथ साथ ही घूम रही थी, उसके लिए ये सब कुछ नया था जबकि मेरा तो आपको पता ही है कि मैं तो शुरू से ही इस मामले में कमीना हूँ। दरवाजा बंद करते ही मैंने आकांक्षा को अपनी गोद में उठाया और उसको लेकर मेरे दोस्त के बेडरूम में ले गया। दिन के उजाले में आकांक्षा एकदम सेक्स की देवी लग रही थी। बेडरूम में जाते ही मैंने आकांक्षा को बाहों में भर लिया और हम एक दूसरे को चूमने लगे। हम दोनों ही ज्यादा समय ख़राब नहीं करना चाहते थे तो अगले कुछ ही पलों में हम दोनों ने एक दूसरे के कपड़ों का बोझ हल्का कर दिया। आकांक्षा को पेशाब का जोर हो रहा था तो वो बाथरूम में चली गई और मैं बिल्कुल नंग धड़ंग बेड पर लेट गया। कुछ देर बाद आकांक्षा बाथरूम से वापिस से आई तो उसका नंगा बदन देख कर मेरी आँखें उसके बदन से ही चिपक गई। खूबसूरत चेहरा, सुराहीदार गर्दन, छाती पर दो मस्त तने हुए अमृत के प्याले, पतली कमर, मस्त गोरी गोरी जांघें, मस्त लचीले चूतड़। लंड ने भी खुश होकर उसको सलामी दी, वो भी यह सोच कर खुश था कि कल रात इसी अप्सरा की चुदाई का सुख मिला था उसे। मैं बेड से खड़ा हुआ और मैंने आकांक्षा के नंगे बदन को अपनी बाहों में भर लिया।

 

मैंने उसकी गर्दन होंठ गाल कान को चूमना शुरू किया तो आकांक्षा तड़प उठी, उसका बदन भी वासना की आग में दहकने लगा, उसकी आँखें बंद हो गई और वो भी मेरे बदन से लिपटती चली गई।

 

मैंने उसका एक हाथ पकड़ कर लंड पर रखा तो उसने अपने कोमल हाथों से मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। आकांक्षा की सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगी थी।

 

मैं थोड़ा झुका और मैंने उसके एक अमृत कलश को अपने हाथ में पकड़ लिया और दूसरे को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा।

 

कुछ देर बाद मैंने आकांक्षा को बेड पर लेटाया और 69 की अवस्था में आते हुए अपना लंड आकांक्षा के होंठों से लगा दिया और खुद झुक कर आकांक्षा की पाव रोटी की तरह फूली हुई चूत को अपने मुँह में भर लिया।

 

आकांक्षा की चूत पर रात की चुदाई की सूजन अभी तक थी, चूत की दीवारें लाल हो रही थी।

 

मैंने उसकी चूत को ऊँगली से थोड़ा खुला किया और जीभ उसकी चूत में डाल डाल कर उसकी चूत का रसपान करने लगा।

 

आकांक्षा की चूत से कामरस बहने लगा था। रात को जो किया था वो सब अँधेरे में ही था इसीलिए अब दिन के उजाले में ये सब करते हुए बहुत मज़ा आ रहा था।

 

आकांक्षा भी अब मेरा लंड जितना मुँह में आराम से ले सकती थी ले ले कर चूस रही थी। वैसे सच कहूँ तो वो लंड चूसने में थोड़ी अनाड़ी थी और फिर वो कौन सा खेली खाई थी, जितना कर रही थी मुझे उसमें ही बहुत मज़ा आ रहा था।

 

लंड अब फ़ूल कर अपनी असली औकात में आ चुका था, आकांक्षा भी अब लंड को अपनी चूत में लेने के लिए तड़पने लगी थी, वो बार बार यही कह रही थी- हिमांशु. डाल दो यार अब. मत तड़पाओ और फिर अपने पास समय भी तो कम है. जल्दी करो. चोद दो मुझे.. अब नहीं रहा जाता मेरी जान!

 

मेरा लंड तो पहले से ही तैयार था, मैंने आकांक्षा को बेड के किनारे पर लेटाया और उसकी टांगों को अपने कंधों पर रखा।

 

खुद बेड से नीचे खड़े होकर अपना लंड आकांक्षा की रस टपकाती चूत के मुहाने पर रख दिया। लंड का चूत पर एहसास मिलते ही आकांक्षा गांड उठा कर लंड को अन्दर लेने के लिए तड़पने लगी पर मैं लंड को हाथ में पकड़ कर उसकी चूत के दाने पर रगड़ता रहा।

 

मैं आकांक्षा को थोड़ा तड़पाना चाहता था।

 

'यार अब डाल भी दो क्यों तड़पा रहे हो.' आकांक्षा को मिन्नत करते देख मैंने लंड को चूत पर सेट किया और एक ही धक्के में आधे से ज्यादा लंड आकांक्षा की चूत में उतार दिया।

 

आकांक्षा बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसकी चीख कमरे में गूंज गई, वो तो मैंने झट से अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए नहीं तो पूरी कॉलोनी को उसकी चुदाई की खबर हो जाती।

 

आकांक्षा मेरी छाती पर मुक्के मारती हुई बोली- तुम बहुत जालिम हो. बहुत दर्द देते हो. मुझे नहीं चुदवाना तुमसे. बहुत गंदे हो तुम.. आराम से नहीं कर सकते.. या मेरी चूत का भोसड़ा बनाकर ही मज़ा आएगा तुम्हें!

 

मेरी हँसी छुट गई। पर फिर मैंने प्यार से पूरा लंड आकांक्षा की चूत में उतार दिया।

 

और फिर जो चुदाई हुई कि दोस्त का पूरा बेड चरमरा गया। पंद्रह बीस मिनट तक दोनों एक दूसरे को पछाड़ने की कोशिश करते रहे। कभी आकांक्षा नीचे मैं ऊपर तो कभी मैं नीचे तो आकांक्षा ऊपर।

 

आकांक्षा तीन बार झड़ चुकी थी और फिर मेरे लंड ने भी आकांक्षा की चूत की प्यास बुझा दी।

 

हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर कुछ देर लेटे रहे पर अभी बहुत समय बाकी था तो मैं आकांक्षा से बात करने लगा।

 

तब आकांक्षा ने बताया कि वो मुझ से शादी करना चाहती थी पर उसके पापा को सरकारी नौकरी वाला ही दामाद चाहिए था बस इसीलिए उन्होंने मना कर दिया।

 

फिर अभिजित से उसकी शादी हुई पर वो उसको बिल्कुल भी पसंद नहीं है।

 

मौका देख मैंने भी पूछ लिया कि अभिजित उसके साथ सेक्स नहीं करता है क्या?

 

आकांक्षा चौंक गई और बोली- यह तुम कैसे कह सकते हो?

 

मैंने रात को खून वाली बात बताई तो वो लगभग रो पड़ी और बोली- शादी के इतने दिन बाद तक भी मैं कुंवारी ही थी। अभिजित की मर्दाना ताक़त बहुत कम है, वो आज तक मेरी चूत में लंड नहीं डाल पाया है, जब भी कोशिश करता है उसका पानी छुट जाता है और फिर ठन्डे लंड से तो चूत नहीं चोदी जाती। दवाई वगैरा ले रहा है पर अभी तक कोई बात नहीं बनी है।

 

कहने का मतलब यह कि आकांक्षा की चूत की सील मेरे लंड से ही टूटी थी।

 

आकांक्षा मुझ से चुद कर बहुत खुश थी।

 

बातें करते करते ही हम दोनों एक बार फिर चुदाई के लिए तैयार हो गए और फिर एक बार और बेड पर भूचाल आ गया।

 

तभी मेरे फ़ोन पर मेरे मौसा के लड़के का फ़ोन आया, मैंने उसको कुछ बहाना बनाया और कुछ देर में आने की बात कही।

बस फिर हम दोनों तैयार होकर फिर से वापिस घर पहुँच गए। फिर रात को बारात चली और फिर वही नाच गाना मौज मस्ती। अब तो खुलेआम आकांक्षा मुझ से चिपक रही थी और उसका पति अभिजित चूतिया सी शक्ल बना कर सब देख रहा था।

 

रात को जब फेरे होने लगे तो मैंने एक बार फिर आकांक्षा को गाड़ी में बैठाया और एक सुनसान जगह पर ले जा कर एक बार फिर बिना कपड़े उतारे, एक स्पीड वाली चुदाई की, बस गाड़ी के बोनट पर हाथ रखवा कर उसे झुकाया, साड़ी ऊपर की और पेंटी नीचे की और घुसा दिया लंड फुद्दी में।

 

अगले दिन मैंने उसको एक जान पहचान के डॉक्टर से मर्दाना ताकत की दवाई लाकर दी और फिर उसी शाम वो अपने पति के साथ चली गई।

 

कुछ दिन बाद उसने बताया कि मेरी दी हुई दवाई काम कर गई है, उसका पति अब उसको चोदने लगा है पर उसका लंड मेरे जैसा मोटा तगड़ा नहीं है तो उसे मेरे लंड की बहुत याद आती है।

 

वो मुझसे चुदवाने को तड़पती रहती है पर समय ने दुबारा कभी मौका ही नहीं दिया उसकी चुदाई का। वो आज दो बच्चों की माँ है पर आज भी जब उसका फ़ोन आता है तो वो उस शादी को याद किये बिना नहीं रहती।

 

दोस्तों मेरी सच्ची स्टोरी कैसी लगी आप लोगो को मुझे ईमेल कर बता सकते है शायद फिर कभी कुछ नया करूँगा तो आप सभी को जरुर शेयर करूँगा |

  

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