शादी के बाद
सुषमा अपनी ससुराल आई। उसके ससुराल में उसकी 45 साल की सास 50 साल का ससुर थे।
उसका पति दब्बू किस्म का आदमी है, उम्र उसकी 22 साल
और कद काठी से ठीक-ठाक था मगर लोग उसके पति को मीठा कह के पुकारते थे जबकि उसका
नाम सुरेश है। उसकी एक ही ननद है जो शादी कर के ससुराल चली गई। गाँव में सुषमा का
छोटा सा घर है और ज़मीन नहीं है। उसके सास ससुर गाँव के ज़मींदार के खेत पर काम
करते हैं जबकि उसका पति एक दूध वाले की गायों की देख रेख करता है। शुरू-शुरू में
वो घर के सारे काम करती और घर के पिछवाड़े बंधी अपनी तीन गायों की देखभाल करती और
उनका दूध निकालती। घर वाले तडके घर से निकलते, फ़िर शाम को ही लौटते हैं।
एक दिन सुषमा ने
सोचा कि वो अपने पति सुरेश को दोपहर में खाना दे आये। खाना बांधकर वो निकली तो पता
चला कि सुरेश गायों को चराने के लिए गाँव से बाहर गया है। वो भी पूछते-पूछते उसी
दिशा में चल पड़ी।
कोई दो कोस चलने
के बाद उसे गाएँ दिखाई दी और एक झाड़ी के पास सुरेश के चप्पल और धोती दिखाई दी।
उसने झाड़ी के पीछे देखा तो दंग रह गई। उसे समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा
है। सुरेश नंगा था और घोड़ी बना हुआ था, एक 17-18 साल का लड़का घुटनों के बल बैठ कर उसकी गांड मार रहा था। सुरेश की
आवाज़ उसको साफ़ सुनाई दे रही थी- चोद मुझे जोर से यासीन ! चोद राजा, फाड़ दे मेरी गांड अपने मूसल जैसे लण्ड से ! और
वो ऊह्ह आह करता जा रहा था।
सुषमा ने देखा कि
वो लड़का कुत्ते की तरह उसके पति की गांड मार रहा था, उसका मोटा काला लण्ड बार-बार उसके पति की गांड से बाहर आकर
अंदर जा रहा था। उसने देखा कि नीचे सुरेश की छोटी सी लुल्ली लटक रही थी जिसके पीछे
चिपके हुए मूंगफली जैसे छोटे आंड थे। जबकि उसके पति को चोद रहे उस लड़के के अंडकोष
किसी साण्ड के जैसे भरी भरकम थे। सुषमा के मुँह से चीख निकल पड़ी और उसको सुनते ही
दोनों मुड़ गए, लड़के ने अपना
लण्ड सुरेश की गांड से बाहर निकाला और सुरेश ने अपने हाथों से अपने गुप्तांग को ढक
लिया।
क्या कर रहे थे
आप ये ? सुषमा ने पूछा।
कुछ नहीं रानी,
यह यासीन है मेरा दोस्त ! घबराया हुआ सुरेश
बोला।
उधर सुषमा की
नज़र उस लड़के के चिकने लण्ड से हट ही नहीं रही थी और यह देख कर उस लड़के को लगा
कि मौका अच्छा है और उसने तुरंत आगे बढ़ कर सुषमा को दबोच लिया। सुषमा कुछ समझती,
उससे पहले तो उसने उसको मसलना शुरू कर दिया और
उसके होंठ खुद के होंठों में दबा लिए। एक झटके में उस लड़के ने सुषमा की सारी ऊपर
कर दी। चड्डी तो वो पहनती नहीं थी और
उसकी चूत में
ऊँगली करने लगा।
सुषमा के होश उड़
गए। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। सुषमा उस लड़के से अपने को
छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। तब तक सुरेश ने अपने कपड़े वापस पहन लिए थे और उसके
सामने वो झुक कर उस लड़के का लण्ड चूस रहा था।
एक झटके में उस
लड़के ने सुषमा को नीचे जमीन पर गिरा दिया, उसकी सारी ऊपर की और अपने लण्ड को उसकी चूत के मुँह पर अड़ा
दिया। सुषमा की बालों वाली चूत के मुँह पर उसका मोटा काला कटा हुआ लण्ड दस्तक दे
रहा था और सुरेश उसे पकड़ कर अपनी बीवी की चूत में घुसा रहा था।
घबराई हुई सुषमा
एक झटके में उस लड़के की गिरफ्त से छूटी और भाग खड़ी हुई। सरपट दौड़ती हुई पाँच
मिनट में हांफ़ती हुई घर पहुँच गई। सुषमा इतनी परेशान थी कि उसे कुछ समझ में नहीं
आया कि यह क्या हुआ !
रात के आठ बजे तक
उसका पति लौट कर घर नहीं आया। सुषमा से रहा नहीं गया, उसने घबराते हुए सास को चुपचाप सारी बात बताई।
बेटा, एक दिन तो तुझे यह सब पता चलना ही था ! सुषमा
की सास रुक्मणि बोली।
रुक्मणि ने कहा-
चिन्ता की कोई बात नहीं, सुरेश घर आ
जायेगा।
रुक्मणि सुषमा को
छत पर ले गई और बोली- बेटा अब मैं तुझे सारी कहानी बता देती हूँ।
रुक्मणि ने सुषमा
को बताया- सुरेश उसके ससुर से पैदा नहीं हुआ बल्कि ज़मींदार के भाई का बच्चा है।
शादी के बाद में ज़मींदार के घर का काम करने जाती तो ज़मींदारन मुझे रोज़ अपने
कमरे में बुला कर अपनी चूत चटवाती और उसमे केला कद्दू वगेरह डलवाती। बाद में
ज़मींदार के छोटे भाई की पत्नी रानी भी मुझसे यही सब करवाने लगी। ज़मींदार के छोटे
भाई विकलांग थे और व्हील-चेयर पर बैठे रहते थे। मुझे बाद में उन लोगों ने छोटे
मालिक की ज़िम्मेदारी दे दी। मैं उनको नहलाती, उनके कपड़े बदलती और उनका पाखाना, मूत वगेरह साफ़ करती। गरीबी में और कोई चारा भी नहीं था।
रुक्मणि कहने
लगी- छोटे मालिक धीरे धीरे उसके स्तन दबाने लगते और उसको चूमने लगे। उनका शरीर कमर
से ऊपर स्वस्थ था और वे मुझे बिस्तर के कोने पर लिटा कर मेरी चूत चाट कर मुझे मज़ा
देते। धीरे-धीरे छोटे मालिक को नहलाते समय वो उनके सुस्त और नरम लण्ड की भी मालिश
करती। एक बार एक वैद्य उनके लिए एक दवाई लाया और मुझे कहा गया कि मैं उसको छोटे
मालिक के लण्ड पर दिन में तीन बार लगाऊँ।
रुक्मणि कहती
रही- एक दिन मैं मालिश कर रही थी कि छोटे मालिक के निर्जीव लण्ड में हल्का सा तनाव
आया और वो मुझे जोर जोर से उसको हिलाने को कहने लगे। मैंने उसको हिलाया तो दो चार
बूंदें निकली मगर उनको बड़ा मज़ा आया। धीरे धीरे छोटे मालिक के लण्ड में तनाव आने
लगा और मैं उनकी मुठ मारती रही। एक दिन उन्होंने मुझे नीचे लिटा कर ऊपर चढ़ कर
लण्ड को अंदर डालने की कोशिश की मगर पूरी ताकत नहीं होने से वो डाल नहीं पाए। उनको
बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपनी पत्नी और तेरे ससुर को बुलाया।
सुषमा अवाक् सी
सब सुन रही थी, उसकी सास ने
बताया - उसके बाद सुषमा के ससुर यानि लल्लू लाल जी रुक्मणि की चूत चाट कर गीली
करते और छोटे मालिक की पत्नी छोटे मालिक का लण्ड चूस-चूस कर बड़ा करती, फिर लल्लू लाल रुक्मणि की टांगें चौड़ी करता और
छोटी मालकिन अपने पति का लण्ड पकड़ कर अंदर डालती। ऐसे वो मुझे रोज़ चोदते रहे।
रुक्मणि बोली-
छोटे मालिक ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक मुझे गर्भ नहीं ठहर जाये, तब तक मेरा पति मुझे नहीं चोदेगा। कोई तीन
महीने की इस चुदाई के बाद मुझे बच्चा ठहर गया, तब कहीं जाकर छोटे मालिक खुश हुए। बदले में उन्होंने मेरे
पति यानि तेरे ससुर को छोटी मालकिन को चोदने की इजाज़त दी, लेकिन मेरा बच्चा गिर न जाये इसलिए वो मुझे छू भी नहीं सकते
थे।
सुषमा सांस रोके
ये सब सुन रही थी- इसका मतलब हमारे पति सुरेश ससुरजी के वीर्य से नहीं पैदा हुए ?
उसने पूछा।
नहीं बेटी,
सुरेश तो छोटे मालिक की ही औलाद है, रुक्मणि ने बताया।
रुक्मणि आगे का
हाल बताने लगी- रात होते ही कमरे में में तेरे ससुर, छोटे मालिक और छोटी मालकिन कमरे में आ जाते फिर वो तेरे
ससुर से भी अपनी गाण्ड मरवाते उससे पहले छोटी मालकिन तेल लगा कर उनकी गाण्ड के छेद
को चिकना कर देती।
रुक्मणि बोली-
तेरे ससुर जैसा लण्ड गाँव में शायद ही किसी का होगा बहू ! पूरा 9 इंच का मोटा और
काला ! और एक बार किसी पर चढ़ जाएँ तो उसको आधे घंटे चोदे बिना नीचे नहीं उतरते और
उनके आण्ड तो किसी साण्ड से कम नहीं ! एक बार वीर्य किसी चूत में डाल दें तो गर्भ
तो ठहरा हुआ समझो बेटी !
यह सुन कर सुषमा
की आँखों एक चमक आ गई।
रुक्मणि कहने
लगी- तेरे ससुर लल्लू लाल की चुदाई से छोटी मालकिन को भी गर्भ ठहर गया और उनका
बच्चा जो अब 18 साल का है। इसका नाम राहुल है, असल में तुम्हारे ससुर का बेटा है। रुक्मणि आगे बताने लगी-
बड़े मलिक यानी ज़मींदार गाण्ड मरवाने के शौकीन थे और सुरेश के पिता उनकी गाण्ड
मारा करते थे, बदले में वो भी
उनसे अपनी पत्नी को चुदवाते थे। मालकिन को एक लड़का और एक लड़की हुए, वो दोनों भी तुम्हारे ससुर के वीर्य से ही पैदा
हुए बेटी !
लेकिन सुरेश का
लण्ड इतना छोटा कैसे?” सुषमा ने पूछा।
बेटी इसकी बड़ी
दुखद कहानी है- एक दिन जब सुरेश 6 साल का था तो छोटी मालकिन उसे नहलाने के बहाने
उसके छोटे लण्ड से खेलने लगी और छोटे मालिक ने देख लिया। वो गुस्से में आग-बबूला
हो गये और कपड़े धोने की लकड़ी लाकर सुरेश के लण्ड पर ज़ोर से मारी और वो बेहोश हो
गया। सुरेश बच तो गया मगर डॉक्टर ने कह दिया अब वो कभी बाप नहीं बन पाएगा। उसके
आँड का कचूमर बन गया था।
सुषमा रोने लगी
बोली- मेरा जीवन नरक क्यूँ बनाया? मेरी शादी नपुंसक
से क्यूँ की?
रुक्मणि ने उसे
गले लगाया और बोली- चिंता मत कर बेटी ! मैं हूँ ना ! तेरे ससुर मुझे बच्चा नहीं दे
पाए तो क्या ! अपनी बहू को तो दे सकेंगे ! एक साथ वो बाप भी बनेंगे और दादा भी !
और घर की बात घर में रह जाएगी।
सुषमा को कुछ समझ
नहीं आया, वो बोली- ऐसा कैसे हो
सकता है? मैं .. ?
चिंता मत कर बेटी
! मैं हूँ ना ! और सुरेश की चिंता मत कर ! वो इस काम में सहयोग करेगा !
सुषमा चौंकी-
सहयोग वो कैसे?
अब तुझसे क्या छुपाना
बेटा ! सुरेश गाण्ड मरवाने का इतना आदि हो गया है कि उसने तुम्हारे ससुर का लण्ड
भी नहीं छोड़ा। एक बार लिए बगैर रात में सोता तक नहीं वो ! रुक्मणि बोली।
क्या सच में?
सुषमा ने पूछा।
हाँ बेटा,
मेरे सामने ही तो होता है हर रोज़ ! रुक्मणि
बोली- सुरेश मेरी चूत भी चाट लेता है कई बार ! तुम्हारे ससुर का लण्ड चूस कर मेरे
लिए खड़ा करता है फिर मेरी चूत में भी डालता है और जब तुम्हारे ससुर मुझे चोदते
हैं तो उनकी गाण्ड और आण्ड चाटता है। फिर उनके झड़ने के बाद मेरी चूत का सारा
वीर्य चाट कर साफ कर देता है।
सुषमा को अब कुछ
कुछ समझ आने लगा था।
आज रात तू नहा धो
कर तैयार रहना ! तेरी सुहागरात आज तेरे ससुर के साथ ! रुक्मणि आँख मार कर बोली।
रात को खाना-वाना
ख़ाने के बाद सुषमा ने नई साड़ी पहनी, परफ़्यूम लगाया और तैयार हो गई।
दस बजे उसकी सास
उसके कमरे में आई और बोली- चल बेटी, घबराना मत ! मैं तेरे पास हूँ !
यह कह कर वो उसे
ले गई। सुषमा अंदर गई तो देखा कि उसके ससुर बिस्तर पर नंगे लेटे हैं और सुरेश भी
नंगा होकर उनकी तेल मालिश कर रहा है। सुषमा ने आँखें इधर फ़ेर ली।
रुक्मणि ने सुषमा
को बिस्तर पर लिटाया और धीरे धीरे उसके सारे कपड़े उतार दिए और खुद भी नंगी हो गई।
सुषमा आँखें मूंदे लेटी रही। थोड़ी देर में उसने देखा कि सुरेश उसकी तेल मालिश कर
रहा है और बाद में वो उसकी चूत चाटने लगा। चूत एक दम गीली होने के बाद सुरेश ने उसमें
खूब सारा तेल लगाया। सुषमा ने देखा कि नीचे चटाई पर रुक्मणि लल्लू का लण्ड चूस रही
है और उस पर तेल लगा रही है। सुषमा की आँखें अपने ससुर के हथियार को देख कर फ़टी
की फ़टी रह गई। सास सच कह रही थी कि यह लण्ड नहीं हथोड़ा है।
थोड़ी देर में
रिक्मणि उसके पास आई और बोली- बेटी, तैयार हो जा !
लल्लू लाल भी
बिस्तर पर आ गए और सुषमा के बड़े-बड़े, गोल-गोल स्तन सहलाने और दबाने लगे। उधर रुक्मणि ने सुषमा की टांगें चौड़ी कर
दी। सुरेश उसकी चूत में पूरी जीभ डाल कर उसको कुत्तों की तरह चाट रहा था।
सुषमा आँखें बंद
कर लेटी हुई थी, तभी उसको लगा
उसके ससुर उसके ऊपर आ गये हैं। उसके होंट ससुर के होंटों से मिले और वो उसको
पागलों की तरह चूमने लगे और अपने मज़बूत हाथों से सुषमा के बड़े बड़े स्तन दबाने
और मसलने लगे। सुषमा के स्तन पहली बार कोई मर्द इस तरह दबा रहा था। उसकी चूत
धीरे-धीरे गीली हो चुकी थी। ससुर को शायद इस बात का एहसास था, उन्होने अपने मोटे लण्ड को सुषमा की चूत के
मुँह पर रखा और उस दिन की तरह सुरेश उसको पकड़ कर उसकी चूत में घुसाने लगा।
सुषमा की चूत के
दरवाज़े पर जैसे ही लल्लू लाल का मोटा तगड़ा लण्ड पहुँचा, उसको दर्द महसूस हुआ मगर उसकी सास उसकी दोनों टाँगे पकड़े
हुए थी और दर्द से बचना नामुमकिन था। उधर तेल की वजह से लल्लू का लण्ड भीतर सरकने
लगा और सुषमा के होंट भिंचने लगे।
बेटा चिंता मत
करो, सहयोग करो, एक दो बार का ही दर्द है, फिर मज़ा आएगा ! ससुर जी बोले।
रुक्मणि ने थोड़ी
टाँगें और चौड़ी कर दी और ससुरजी से बोली- आप तो एक झटके में पूरा लण्ड पेल दो !
फिर कुछ नही होगा !
मगर ससुरजी धीरे
धीरे लण्ड सरकाते रहे। सुषमा की चूत दर्द से फट रही थी, टाँगें दुखने लगी थी मगर लल्लू लाल अनाड़ी नहीं थे, चूमते रहे और धीरे-धीरे लण्ड सरकाते रहे,
सुषमा चिल्लाती रही- ससुर जी रहम कीजिए ! फिर
कर लीजिएगा ! मेरी चूत फट जाएगी !
मगर लल्लू लाल
कहाँ रुकने वाले थे, 5 मिनट बाद
उन्होंने अपने पूरा चिकना लण्ड बहू की चूत में पेल ही दिया, अब सिर्फ़ आँड बाहर रह गये। जैसे ही सुषमा का दर्द थोड़ा कम
हुआ और वो सामान्य हुई, उन्होने लण्ड को
अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। लल्लू लाल बहू की चूत के खून से रंगा लण्ड अंदर-बाहर
करते रहे, सुषमा की चीखे सुनाई देती
रहीं।
बेटा तू बापू की
गाण्ड चाट ! मैं आँड चाटती हूँ, नहीं तो ये बहू
को चोद चोद कर मार डालेंगे ! रुक्मणि बोली।
सुषमा ने देखा कि
उसका पति उसके ससुर की गाण्ड चाट रहा था और सास ससुर के मोटे काले अंडकोष चाट रही
थी। लल्लू लाल जी उत्तेजना के शिखर पर थे- बहू, भर दूँ तुम्हारी कुँवारी चूत अपने ताक़तवर वीर्य से?
उन्होने पूछा।
सुषमा ने कुछ
बोलना चाहा ही था कि वो गर्र-गर्र करते हुए झड़ गये।
ओह ! आपने तो कोई
आधा कप पानी बहू की चूत में छोड़ दिया है, बच्चा होकर रहेगा ! रुक्मणि बोली।
शेष अगले भाग में
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