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मजदूरों के घर की औरतों की चुदाई (Majdur ki ghar ki aurato ki chudai)

उस एक मजदूर के सबके सामने अपनी बेटी को चोदने के कारण बाकी सब भी अपनी घर की औरतों की ऐसी ही खुलकर चुदाई करना चाहते थे। पर पहले मुझे लगा के सबके घरों में ऐसा हो पाना संभव नहीं होगा। क्योंकि सबके घरों का माहौल अलग अलग होता हैं। फिर एक दिन मैंने उन सबको अपने क्लिनिक बुलाया और फिर उन सबके साथ में मैं नंगी होकर अंदर वाले कमरे में चली गई और आगे से कमरा बंद करके बातें करने लगी। बाहर क्लिनिक में पापा औऱ काका बैठे थे जो कि कोई आता तो उसे कह देते के मैं बाहर गई हूं। फिर मैं और वो 6-7 जने एक कमरे में बंद होकर बातें करने लगे। पहले मैंने उन्हें समझाया के ये काम उन्हें धीरे धीरे करना हैं और घर मे ऐसा माहौल बनाना हैं के सब एक दूसरे के सामने नंगे रह सके और चुदाई भी कर ले। वो सब लोग शादीशुदा थे और उनके घर मे उनके अलावा उनके माँ बाप, भाई बहन और उनके बच्चे थे। फिर मैंने उन्हें शुरुआत अपनी बीवी से करने को कहा और उसे किसी तरह ये सब करने के लिए मनाने के लिए कहा। इस प्रकार मैं पूरे दिन तक उन्हें समझाती रही साथ मे हम थोड़ी थोड़ी मस्ती भी करते रहे। मैंने पहले उन सबके लंड हिलाए और फिर मैंने उनके लंड चूसे भी। उन्होंने भी मेरे बोबे खूब दबाए और मेरी चूत चाटी। फिर मैंने उन्हें कहा के उनमें से कोई ये काम अपने आप सबसे पहले करेगा उससे मैं वो कहेगा तब ही चुदाई करवा लूँगी। फिर लगभग शाम को हम कमरे से बाहर निकले। फिर वो सब तो एक एक करके अपने कपड़े पहनकर जाने लगे। वो सब चले गए। काका भी चला गया था। मैं और पापा ही रह गए थे।

 

फिर पापा मुझे नंगी देखकर रोमांटिक हो गए तो वो भी कपड़े खोलकर अंदर आ गए और हमने क्लिनिक को अंदर से बंद कर लिया। फिर पापा मुझे चोदने लगे और बोलने के भगवान ने मुझे कितनी सेक्सी बेटी दी हैं। फिर वो मेरे बोबे चुसने कगी और साथ मे मेरे बदन की तारीफ करने लगे। फिर पापा बोले के मुझे तो कभी कभी यकीन ही नहीं होता हैं के मैं अपनी बेटी को चोद रहा हूँ। मैं भी पापा का पूरा साथ दे रही थी और मादक सिस्कारियाँ निकाल रही थी। फिर पापा ने मेरी गाँड भी मारी और फिर आखिरकार झड़ गए। उस दिन हम दोनों को काफी ज्यादा मजा आया था। तब तक अंधेरा हो चुका था फिर हम घर चलने की तैयारी करने लगे। फिर मैंने कपड़े नहीं पहने और पापा ने मेरे कपड़े और बाकी समान ले जाकर जीप में रख दिया। फिर मैं क्लिनिक के ताला लगाने लगी इतने में वहाँ गाँव का ही एक आदमी आ गया। जीप थोड़ी दूर खड़ी थी और ताला भी मैंने लगा दिया था और चाबी पापा को दे दी थी। वहाँ कोई छुपने की जगह भी नहीं थी। फिर उसे आता देखकर पापा उसके पास चले गए और उससे बातें करने लगे। मैं एक दम नंगी क्लिनिक के आगे ही खड़ी रही। फिर वो पापा के पास थोड़ा रूका और फिर सीधा मेरे पास आ गया। मैं भी बिना कोई डर और शर्म के उसके सामने खड़ी रही। तब अंधेरा तो हो चुका था पर अंधेरे में इतना तो पता चल ही जाता हैं के किसने कपड़े पहने हैं और किसने नहीं। फिर मुझे नंगी देखकर कुछ नहीं बोला और बस देखता ही रहा। फिर मुझे देखकर वो पीछे पापा की तरफ मुड़ा और पापा से मेरी इस हालत के बारे में पूछा। फिर पापा पहले तो कुछ नहीं बोले और फिर मैं बोलने लगी। फिर मैंने उनसे कहा के रात को मेरे एलर्जी का रोग हैं और आज मैं एलर्जी की दवाई नहीं लाई थी तो बिना कपड़ों के रहना पड़ रहा हैं। क्योंकि कपड़ा लगते ही जोर की खुजली होने लग जाती हैं। फिर मैंने उन्हें कहा के अंदर चलिए अंदर चलकर बात करते हैं। फिर मैंने पापा से इशारे से ताला खोलने के लिए कहा। फिर पापा ने ताला खोल दिया तो हम अंदर चले गए और लाइट जलाकर क्लिनिक अंदर से बंद कर लिया। लाइट में मेरा बदन बिल्कुल साफ दिख रहा था और मैं और ज्यादा सेक्सी लग रही थी। उस दिन पापा ने मुझे काफी अच्छी तरह से मसला था तो मेरा लगभग सारे शरीर ही लाल पड़ गया था। फिर मैं उसे दिखाती हुई बोली के ये देखिए। ऐसे करके मैंने उसे अपने बदन के अच्छे से दर्शन करवा दिए।

 

फिर मैंने उनसे कहा के आप ये गाँव मे किसी को मत बोलना के मैं आपके सामने नंगी हुई हूँ। वो बोले के नहीं नहीं किसी को नहीं बताऊंगा। वो आदमी अधेड़ उम्र का था और गाँव का काफी इज्जतदार आदमी था और पापा से भी अच्छी जानपहचान थी। फिर मैंने उसे देखा और उसको दवाई वगेरह दी। उसे बुखार था। फिर वो मुझे काफी घूर घूर के देख रहा था। तब रात काफी हो चुकी थी तो फिर पापा ने चलने के लिए कहा और फिर किसी दिन आराम से बैठकर बातें करने के लिए कहा। फिर वो चला गया और हम भी जीप में चढ़कर घर जाने लगे। रास्ते मे मैं पापा से बोली के इसे तो आज रात नींद नहीं आएगी। फिर मैं और पापा हँसने लगे। फिर हम घर पहुँचकर खाना वगैरह खाकर सो गए।

 

फिर अगले दिन जब मैं क्लिनिक में थी तब कई मजदूर मेरे पास आये और वो मुझसे आईडिया पूछने लगे जिससे वो अपने घर की औरतों को एक दूसरे के सामने ही नंगी करके चोद सके। फिर मैंने सोचा के ऐसे तो बात नहीं बनेगी। कोई ऐसा तरीका सोचा जाए जो सब पर काम कर जाए। फिर मेरे दिमाग मे एक विचार आया। फिर मैंने उन सबको ऐसी दवाई जिससे तबियत बिगड़ जाए। फिर मैंने उन्हें ये दवाई उनके घर मे जो भी औरत हैं उन्हें खाने वगेरह में देकर खिलाने के लिए बोला। फिर उन सबने ऐसा ही किया और फिर मुझे बुलाया गया। उन सबका पेट दर्द ही कर रहा था। तो मैं उनसे बोली के तुम्हारी चूत में इन्फेक्शन हो गया हैं या तो तुम इसका इलाज शहर जाकर करवाओ या बिल्कुल मुफ्त में घर मे ही कर लो। वो सब गरीब थे तो वो शहर नहीं जा सकते थे तो उन सबने फ्री वाला तरीका मुझसे बताने के लिए कहा। तो फिर मैंने उन्हें अपने घर के मर्दों से अपनी चुत चुदवाने के लिए बोला। ताकि चूत का इन्फेक्शन ठीक हो सके। फिर उनमें से कुछ तो मान गई और फिर वो तो अपने घर के मर्दों से करने लगी। जो नहीं मानी तो मैंने उन्हें उस दवाई की डबल डोज देने के लिए कहा तो दर्द के मारे उनका बुरा हाल हो गया और फिर वो भी चुदवाने लगी। इस प्रकार सब अपने घर मे चुदाई करने लगे। कुछ के घर मे सिर्फ एक ही मर्द था तो उसकी माँ, बेटी और बीवी सब घोड़ी बनकर उसी से चुदवाती और किसी के घर मे एक से ज्यादा मर्द थे तो वो अपनी बीवियों के एक दूसरे के सामने ही बदल बदल कर चुदाई करते।

 

इस प्रकार मेरा प्लान सफल हुआ और सब अपने घर की चूत चोदने लगे। पर ये सब गाँव मे किसी और को पता नहीं  चला। फिर कुछ दिन तक करने से उन सबको मजा आने लगा था तो फिर वो अपनी मर्जी से करने लगे। इसके बाद मैं उन सबकघर गई और उन्हें कंडोम लगाकर चुदाई करने को बोला और कुछ बातें और बताई ताकि उन्हें hiv/एड्स ना हो जाये और सब मजे से चुदाई कर सके। फिर मैंने उनकी बीवी, बेटी और माँ के सामने नंगी होकर उन मजदूरों से उनके घर पर ही चुदाई की। फिर मैंने उनकी घर की औरतों को आपस मे मजे लेने भी सिखाये और उन्हें एक दूसरे की चूत चूसना और चूत चाटना सिखाया। इस प्रकार फिर धीरे धीरे सब खुल गए। फिर वो सब मजदूर जब खेत पर काम करने आते तो सब एक दूसरे को अपने घर की चुदाई की बातें बताते और फिर वो सब सुनकर अपना लंड हिलाते। फिर उन सबने इस सबके लिए मुझे काफी धन्यवाद दिया और बोले के मुझे जब भी कोई उनकी जरूरत पड़े तो वो मेरे लिए हमेशा तैयार रहेंगे। 

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