पिछले भाग की कुछ
अन्तिम पंक्तियाँ :
लल्लू लाल कहाँ
रुकने वाले थे, 5 मिनट बाद
उन्होंने अपने पूरा चिकना लण्ड बहू की चूत में पेल ही दिया, अब सिर्फ़ आँड बाहर रह गये। जैसे ही सुषमा का दर्द थोड़ा कम
हुआ और वो सामान्य हुई, उन्होने लण्ड को
अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। लल्लू लाल बहू की चूत के खून से रंगा लण्ड अंदर-बाहर
करते रहे, सुषमा की चीखे सुनाई देती
रहीं।
बेटा तू बापू की
गाण्ड चाट ! मैं आँड चाटती हूँ, नहीं तो ये बहू
को चोद चोद कर मार डालेंगे ! रुक्मणि बोली।
सुषमा ने देखा कि
उसका पति उसके ससुर की गाण्ड चाट रहा था और सास ससुर के मोटे काले अंडकोष चाट रही
थी। लल्लू लाल जी उत्तेजना के शिखर पर थे- बहू, भर दूँ तुम्हारी कुँवारी चूत अपने ताक़तवर वीर्य से?
उन्होने पूछा।
सुषमा ने कुछ
बोलना चाहा ही था कि वो गर्र-गर्र करते हुए झड़ गये।
ओह ! ओह ! आपने
तो कोई आधा कप पानी बहू की चूत में छोड़ दिया है, बच्चा होकर रहेगा ! रुक्मणि बोली।
अब आगे :
ससुर जी ऊपर से
हट कर बिस्तर के कोने पर बैठ गये और सुषमा को सहलाने लगे। उधर सुरेश नीचे जाकर
रुक्मणि की चूत चाट रहा था।
चाट मेरे लाल,
चाट ! मेरे बेटे तेरी जीभ तो लण्ड से भी
ज़्यादा मज़ा देती है ! रुक्मणि बोल रही थी। उधर लल्लू लाल जी भी नीचे पहुँच गये,
उन्होंने सुरेश की गाण्ड में तेल लगा कर उसको
उंगली से चोदना शुरू कर दिया।
हाँ बापू !
फ़ाड़ो मेरी गाण्ड ! सुरेश गाण्ड नचाते हुए बोल रहा था।
ससुर ने सुषमा को
नीचे खींचा और उसका मुँह से अपने लण्ड को अड़ा दिया- इसको चूस चूस कर बड़ा कर
बहूरानी ! ताकि मैं तेरे पति की सेवा कर सकूँ ! उन्होने कहा।
सुषमा ने उनके
मोटे काले लण्ड को कस के पकड़ा और जीभ फेरने लगी। धीरे धीरे लल्लू लाल जी का
सुपारा चीकू जितना बड़ा हो गया और लण्ड एकदम हथोड़े जैसा !
ससुरजी ने बहू को
धन्यवाद दिया और वापस से सुरेश की गाण्ड पर अपना हथियार तान दिया। किसी मंजे हुए
खिलाड़ी की तरह सुरेश ने गाण्ड को हिलाया और एक ही झटके में लल्लू लाल जी का आधा
लण्ड उसकी गाण्ड में चला गया।
सुरेश ज़ोर से
चीखा- मर गया बापू ! अभी पूरा कहाँ मरा है? अभी तो आधा ही मारा है ! लल्लू लाल जी बोले और पूरा लण्ड
पेल दिया। सुषमा सोचने लगी कि सुरेश की गाण्ड क्या उतनी बड़ी है?
उधर सुरेश अपनी
माँ की चूत चाटे जा रहा था।
रुक्मणि उछल रही
थी- बेटा। मैं झड़ने वाली हूँ, पूरी जीभ डाल दे
अपनी माँ के भोसड़े में ! वो बोली।
और दो मिनट में
हांफ़ते हुए अपना पानी छोड़ दिया। उधर लल्लू लाल जी की रफ़्तार बढ़ गई थी।
रुक्मणि पीछे आ
गई, मेरे बेटे की गाण्ड फाड़
दोगे क्या ? अब रहम करो ! वो
बोली और सुरेश के नीचे लेट गई। सुषमा ने देखा कि रुक्मणि सुरेश की लुल्ली को चूस
रही थी और अपने हाथों से ससुरजी के बड़े बड़े अण्डकोषों को मसल रही थी।
अब अपने बेटे की
गाण्ड अपने पानी से भर दो ! रुक्मणि बोली। यह सुनते ही लल्लू लाल जी तेज़ हो गये
और बोले- हाँ जान। ये ले तेरे बेटे की गाण्ड में अपना पानी डालता हूँ ! कहकर वो
झड़ गये। सुषमा थक कर सो गई।
सुषमा को पता चल
गया था कि उसके ससुर उसकी सास को तो माँ नही बना सके मगर ये कसर अब उसके साथ ज़रूर
पूरी करेंगे।
सुबह जब उसकी आँख
खुली तो ससुर और पति दोनों काम पर जा चुके थे मगर सास नहीं गई थी।
रुक्मणि बोली- आज
तेरी सेवा करूँगी बहू !
खून से भरी चादर
धुल गई थी और रुक्मणि ने सुषमा से कहा- नहाने से पहले मैं तेरी तेल मालिश करूँगी।
रुक्मणि ने सुषमा
के पूरे कपड़े खोल दिए और उसके पूरे बदन पर मालिश करने लगी। फिर उसने रेज़र लेकर
सुषमा की झांट साफ की और बोली- बेटा यहाँ हमेशा सफाई रखनी चाहिए। मैं, तुम्हारे ससुर और सुरेश के झांट भी साफ करती
हूँ हमेशा !
सफाई के बाद
रुक्मणि ने तेल लेकर उसकी चूत पेर लगाया और उंगली से सुषमा की चूत चोदने लगी।
बेटी, इससे तेरा छेद बड़ा हो जाएगा ताकि आज रात तू
आसानी से ससुर का लण्ड ले सके ! वो बोली।
उंगली की चुदाई
में सुषमा को बहुत मज़ा आ रहा था और वो सास के साथ साथ अपनी गाण्ड हिलाने लगी। कोई
पाँच मिनट बाद सास की तीन उंगलियाँ अंदर थी और सुषमा झड़ गई। उसे पहली बार चरमसुख
मिला था। सास उसको रात के लिए तैयार कर रही थी।
रात होते ही
सुषमा वापस ससुर के कमरे में गई। ससुरजी वैसे ही नंगे लेटे हुए थे, पास जाते ही उन्होंने सुषमा को अपने पास खींच
लिया और चूमने लगे। एक ही पल में उन्होंने सुषमा को नंगा कर दिया और उसकी चूत
चाटने लगे। कोई पाँच मिनट बाद सुषमा अपने ससुर की जीभ पर झड़ गई। उधर सुरेश अपने
पिता का लण्ड कुत्तों की तरह चाट रहा था। सुषमा के झड़ते ही लल्लू लाल जी ने अपना
लण्ड उसकी चूत से भिड़ाया और एक ही शॉट में भीतर पेल दिया। सुषमा चीखी मगर उसे
आनंद भी आया। अब ससुरजी धीरे-धीरे लण्ड अंदर-बाहर करने लगे। उसको अच्छा लग रहा था,
उसने अपने हाथों से ससुरजी की गाण्ड कस कर पकड़
ली और उन्हें अपने ऊपर दबाने लगी।
लल्लू लाल जी ने
धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और ज़ोर-ज़ोर से सुषमा को चोदने लगे। उधर सुरेश अपने
पिताजी के अमरूद समान आण्डों को तेल लगा कर मसल रहा था और कह रहा था- बापू इन
आण्डों का पूरा रस डाल दो इस रांड की चूत में, ताकि इसको आपका बच्चा हो !
हाँ बेटा,
पूरा वीर्य खाली कर दूँगा ! लल्लू लाल जी बोले
और एक चीख के साथ वो झड़ गये। सुषमा का भी पानी निकल गया। सुषमा को पहली बार चुदाई
का मज़ा आया था।
अगले दिन रुक्मणि
बोली- बेटी, हालाँकि तेरे
ससुर का लण्ड शानदार है लेकिन तू मुझे कहेगी कि मैंने तुझे जवान लण्ड का मज़ा नहीं
दिया, इसलिए आज एक जवान लण्ड के
लिए तैयार रहना ! वो आँख मारते हुए बोली।
सुषमा कुछ समझती
उससे पहले यासीन वहाँ आ गया। यह वही लड़का था जिसको उसने अपने पति सुरेश की गाण्ड
मारते हुए देखा था। सुरेश उसको कमरे में लाया और अंदर से बंद कर दिया। सुरेश ने एक
मिनट में सुषमा के कपड़े उतार दिये और यासीन को नंगा कर उसका लण्ड चूसने लगा। सुषमा
ने देखा कि यासीन का लण्ड भी बहुत बड़ा था हालाँकि वो उसके ससुर के लण्ड से छोटा
था मगर मोटाई अच्छी थी और ससुर की तरह उसके लण्ड के आगे चमड़ी नहीं थी।
यासीन तुरंत
सुषमा के पास आया और उसके 38 इंच के स्तन दबाने लगा। उधर सुरेश नीचे सुषमा की चूत
और यासीन का लण्ड चाट रहा था। यासीन कामोत्तेजना में पागल हो रहा था और उसने झटके
से अपने लण्ड का गुलाबी सुपारा सुषमा की चूत में पेल दिया। सुषमा के मुँह से हल्की
सी चीख निकली। चीख सुनते ही यासीन ने पूरा सात इंच का लण्ड अंदर घुसा दिया सुषमा
की साँस ऊपर चढ़ गई। सुरेश यासीन की गाण्ड चाट रहा था और यासीन गालियाँ बक रहा था-
भेन की लौड़ी, आज तेरे हिजड़े
पति के सामने तेरी चूत फाड़ दूँगा।
सुषमा को उसके
मज़बूत झटको से आनंद आ रहा था। यासीन ज़्यादा देर तक चल नहीं पाया, दो मिनट में उसका फव्वारा सुषमा की चूत में छुट
गया। मगर सुरेश कम नहीं था, उसने यासीन का
गीला लण्ड बाहर निकाला और उसको चाटने और चूसने लगा। दो मिनट में यासीन फिर तैयार
था, उसने सुषमा की गीली चूत
में ही अपना लौड़ा पेल दिया।
चोदो मुझे ज़ोर
से ! सुषमा बोली।
इस बार कोई 5
मिनट चोदने के बाद यासीन और सुषमा एक साथ झड़ गये। यासीन के जाने के बाद रुक्मणि
अंदर आई और बोली- मैने ही इस लड़के को सुरेश की गाण्ड मारने की आदत डलवाई है। इसका
चाचा और बाप दोनों मुझे चोद चुके हैं, रात को उन दोनों को बुलाऊंगी ! यह कह कर वो चली गई।
रात में सुषमा ने
देखा कि दो बुड्ढे घर आए, दोनो साठ के
आसपास होंगे। एक की दाढ़ी थी। उनकी उमर देख कर लग नहीं रहा था कि उनका लण्ड काम भी
करता होगा। एक तो हाथ में लाठी लिए हुआ था।
कोई दस बजे
रुक्मणि सुषमा को कमरे में ले गई।
बेटा ये यूसुफ
चाचा हैं और ये अकरम चाचा ! दोनों तेरे ससुर के दोस्त हैं ! वो बोली।
दोनों आदमी एक
दूसरे के कपड़े उतारने लगे। उधर रुक्मणि एकदम नंगी हो गई और सुषमा को भी नंगा कर
दिया। यह देख कर लल्लू लाल जी भी नंगे हो गये। सुषमा ने देखा कि दोनों बुड्ढों के
औज़ार लटके हुए थे और आंड नीचे झूल रहे थे। दोनों बुड्ढे रुक्मणि के आगे खड़े हो
गये और रुक्मणि उनके लौड़े एक एक करके चूसने लगी।
भाभी लण्ड चूसने
में तुम्हारा मुक़ाबला नहीं ! बुड्ढों को भी जवानी चढ़ जाए ! यह कह कर अकरम हंसे।
उधर लल्लू लाल जी
ने सुषमा के मुँह में अपना मोटा सुपारा ठूंस दिया। सुषमा मज़े से चूसने लगी। सुषमा
ने देखा कि कोई 5 मिनट की चूसाई के बाद दोनों बुड्ढों के लण्ड तन गये थे। उसने
देखा कि एक बुड्ढे का लण्ड तो 6 इंच था मगर मोटाई उसकी कलाई जितनी थी, दूसरे का पतला था मगर लंबाई पूरी नौ इंच थी।
अब देखो तुम्हारे
लण्ड तैयार हैं मेरी बहू की चुदाई की लिए ! रुक्मणि बोली।
सुषमा को लल्लू
लाल जी ने बिस्तर पर लिटाया और उसके मुँह मे अपना लण्ड डाल दिया। उधर अकरम ने
सुषमा की टाँगें चौड़ी की और अपना मोटा लण्ड भीतर डाल कर सुषमा को चुदाई के मज़े
देने लगा। सुषमा को मज़ा आ रहा था। ससुर उसके मुँह की चुदाई कर रहे थे और अकरम चूत
की।
उधर सुषमा ने
देखा कि यूसुफ ने रुक्मणि को घोड़ी बनाया हुआ था। रुक्मणि जितनी बड़ी गाण्ड सुषमा
ने ज़िंदगी में नहीं देखी थी। ऐसा लगता था कि जैसे दो बड़े बड़े मटके हों।
यूसुफ रुक्मणि की
गाण्ड को उंगली से चोद रहा था, साथ ही थूक भी
लगा रहा था।
सुषमा को अब समझ
में आया कि उसकी सास पतले और लंबे लण्ड कहां लेती है।
भाभीजान, आपकी गाण्ड है या घड़ा? युसुफ बोले और अपने लण्ड को घुसाने लगे। रुक्मणि दर्द में
चिल्ला रही थी- मेरी मटकी आज फोड़ ही दो ! यह कह कर वो अपनी गाण्ड हिलाने लगी।
युसुफ धीरे-धीरे रुक्मणि को चोदने लगे। उधर अकरम ने रफ़्तार बढ़ा दी थी।
चाचा इतना जोर से
नहीं ! सुषमा बोली।
लल्लू लाल जी ने
अपना लण्ड सुषमा के मुँह से निकाला और युसुफ के पीछे पहुँच गये। दो चम्मच तेल
उन्होंने युसुफ की गाण्ड में लगाया और एक ही झटके में अपने तगड़ा लण्ड यूसुफ की
गाण्ड में पेल दिया। यूसुफ दोनों तरफ से मज़े ले रहा था।
भाभी मैं झड़ने
वाला हूँ ! कह कर उन्होंने रुक्मणि की चूत अपने वीर्य से भर दी। उधर लल्लू लाल जी
ने स्पीड बढ़ा दी थी और उन्होंने अपनी टंकी यूसुफ की गाण्ड में खाली कर दी।
इधर अकरम का पानी
निकलने वाला था। सुषमा दो बार चरमसीमा पर पहुँच चुकी थी और अकरम का गरम फव्वारा
उसके अंदर छुट गया।
चुदाई के बाद
दोनों बुड्ढे बोले- भाभी, एक बार बहू को
हमारे घर लाओ !
रात भर वहाँ जम
कर चुदाई चली। दो महीनों बाद सुषमा को उल्टियाँ आने लगी।
लल्लू लाल जी, रुक्मणि, सुरेश भी सभी खुश थे।
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